________________ 226 वैषधीयचरिते अन्वयः-अयि, विधुम् परिपृच्छ; हे जड ! त्वया दाह-वदान्यता कुतः गुरोः स्फुटम् प्रशिक्ष्यत ! किम् ग्लपित-शम्भु-गलात् गरलात ( अशिक्ष्यत ? ) वा उदधौ वडवानलात् ( अशिक्ष्यत ) ? टीमा-मयि हे सखि ! विधुम् चन्द्रम् परिपृच्छ प्रश्नविषयीकुरु-'हे जड, मूढ, स्वया चन्द्रेण दाहस्य ज्वालनस्य वदान्यता दातृत्वम् ( 'स्युर्वदान्य-स्थूललक्ष्यदानशौण्डा बहुप्रदे इत्यमरः ) अतिदाहकत्वमित्यर्थः कुतः कम्मात् गुरोः आचार्यात् स्फुटम् स्पष्टम् अशिचयत शिक्षिता? किम् ग्लपितः शोषित: दग्ध इति यावत् शम्भु-गलः महादेव कण्ठः ( कर्मधा० ) शम्मोः गलः (प. तत्पु० ) येन तथाभतात ( ब० वी० ) गरलात् विषात् ( 'वेडं तु गरलं विषम्' इत्यमरः) ( अशिक्ष्यत ) ? वा अथवा उदधौ समुद्रे वडवानलात् वाडवाग्नेः सकाशात् ( अशिक्ष्यत ) ? चन्द्रो हि शम्भु-शिरसि निवसति, समुद्राच्चोत्पन्न:, शम्भुगले दाहकं कालकूटाख्यं विषम् , समुद्रा भ्यन्तरे च वाडवाग्निः। द्वयोरेव सकाशात् चन्द्रस्य दाहकत्वग्रहणं सम्भाव्यते उभाभ्यामेव तत्संपका व्याकरण--ग्लपित /ग्लै+णिच् +क्त पुगागम। गुरोः 'आख्यातोपयोगे' (1 / 4 / 28) से पञ्चमी हुई / उदधिः उदकानि धीयन्तेऽत्रेति उदक+Vधा+वि, उदकको उदादेश। अनुवाद-हेसखी / चन्द्रमा को पूछो कि "हे मूढ़ तूने दाह-दान की उदारता प्रत्यक्षतः कौन से शुरु से सीखी है ? क्या महादेव के गले को फूक देने वाले गरल ( कालकूट ) से ? अथवा समुद्र में ( रहने वाले ) वड़वानल से ?" || 48 / / टिप्पणी-श्लोक में ( रलयोर मेदात् ) 'गलाद्गरलात्' तथा 'डवा' 'डवा' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। वडवानल-वड़वा घोड़ी को कहते हैं। उसके मुखवाली अग्नि को बडवानल अथवा ( स्वार्थ में ) अण्ण् प्रत्यय करके बाडवानल मी कहते हैं / महामारत के अनुसार भूगुवंश में एक और्व ऋषि हुए। कार्तवीर्य के पत्र जब परशराम द्वारा अपने पिता के वध का बदला चुकाने के लिए समी भृगु-वंशियों-यहाँ तक कि गर्भस्थ बालकों का मी विनाश करने लगे तो भृगु-वंशीय परिवार की एक स्त्री ने अपना गर्भ अपनी जॉप ( कर ) में छिपा लिया, जिससे बाद में एक बच्चा हुआ जिसका नाम और्व ( उरु से उत्पन्न ) रखा गया। देखते ही उसके तेज से कार्तवीर्य के सभी लड़के अन्धे हो गए और उसकी क्रोधाग्नि की ज्वाला उनके साथ-साथ जर सारे ही जगत को मस्भ करने जा रही थी कि इतने में उसके भृगु-वंशी पितरों ने उसे रोक दिया। अपनी उस क्रोधाग्नि को फिर और्व ने समुद्र में फेंक दिया जहाँ वह घोड़ी के मुख के रूपमें छिपी पड़ी हुई है / इसे और्वाग्नि भी कहते हैं। अयमयोगिवधूवधपातकैर्ऋमिमवाप्य दिवः खलु पात्यते / शितिनिशादृषदि स्फुटदुत्पतत्कणगणाधिकतारकिताम्बरः // 49 // अन्वयः-अयम् अयोगि-वधू-वधपातकैः भ्रमिम् अवाप्य शिति-निशा-दृषदि स्फुट.."म्बरः ( सन्) दिवः पात्यते खलु। टोका-अयम् एष चन्द्रः प्रयोगिन्यः वियोगिन्यः या वध्वः ( कर्मधा० ) तासाम् यो वा