________________ नैषधीयचरिते से दूसरे में संक्रमित हो जाया करती हैं किन्तु विद्या कोई छूत को बीमारी नहीं है, नहीं तो गुरु को छते ही शिष्य में उनकी समी विद्यायें संक्रमित हो जानी चाहिए, इसलिए यह कवि की कल्पनामात्र है, जो यहाँ उत्पेक्षा बना रही है। वाचक शब्द यहाँ 'मन्ये' 'शङ्के'. की तरह 'वेद्मि' है / 'वैद्य' 'विद्यः' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपात है। मानुपीमनुसरत्यथ पस्यौ खर्वभावमवलम्ब्य मघोनी। खण्डितं निजमसूचयदुच्चैर्मानमाननसरोम्हनत्या // 47 // अन्वयः-अथ मघोनी पत्यौ खर्वभावम् अवलम्ब्य मानुषोम् अनुपरति सति आनन·सर रुह. नत्या निजम् उच्चैः मानम् खण्डितम् असूचयत् / टीका-अथ इन्द्रे दमयन्तीविषयककामोद्भवानन्तरम् मघोनी इन्द्राणी पस्यौ भर्तरि इन्द्रे खर्वस्य नीचस्य भावम् नीचत्वम् अय च हस्वत्वम् (प० तत्पु० ) अवलम्ध्य आश्रित्य मानुषीम् मानुषस्त्रीम् अनुसरति अनुगन्तुमिच्छति सति प्राननं मुखम् सरोरुहम् कमलभिव ( उपमित तत्पु० ) तस्य नस्या नमनेन ( 10 तत्पु० ) निजम् स्वकीयम् उच्चैः महान्तम् अथ च दोघम् मानम् अभिमानम् अथ च परिमाणम् खण्डितम् भग्नम् असूचयत् सूचितवती। पति मानुषोमभिलषन्तमवलोक्य इन्द्राण्याः सवोंऽपि महान् सौन्दर्या भिमानो भग्न इति भावः // 47 / / व्याकरण -मघोनी मघोनः स्त्रोति मघवन् + ङीष् ('पुंयोगादाख्यायाम्' 41648 ) सम्प्रपारण / 'श्वयुवमघोनामत द्धिते' 6 / 4 / 133) गुण / मानुषी मानुषस्य स्त्रोति मानुष+ङाप् / नतिः नम्+क्तिन् ( मावे ) / अनुवाद-तदनन्तर इन्द्राणी पति के खर्वत्व ( नी वस्त्र, ह्रस्वत्व ) अपनाकर मानुषी स्त्री के पीछे चल पड़ने पर कमल-सा मुख झुकाए अपना ऊँचा ( महान् , दीर्घ ) मान ( अमिमान, परिमाण ) खण्डित हुआ सूचित कर बैठो / / 47 / / टिप्पणी-इन्द्राणी गम्भीर प्रकृति की नायिका है। वह मुंह से तो पति को कुछ न बोली। सिर नीचा करके ही अपने हृदय का भाव प्रकट कर गई / वह हृदय का भाव था ईष्र्या अथवा निवेद। इस तरह यहाँ भावोदयालकार बन रहा है। विद्याधर अपहृति भी बता रहे हैं अर्थात् सिर नीचा करने के व्याज से उसने ईर्ष्या माव व्यक्त किया / अपह्नव-वाचक शब्द का यहाँ अमाव है, इसलिए अपह्नव आर्थ ही मानना पड़ेगा। नारायण ने यहाँ खर्व, उच्चैः और मान शब्दों में श्लेष मान रखा है / खर्वः बौना तो बना पति, किन्तु मान ( परिमाण ) की ऊँचाई पत्नी की खंडित हुई। जो बौना होता है, उसी की ऊँचाई कम होनी थी, दूसरे की नहीं, लेकिन यहाँ दूसरे अर्थात् इन्द्राणी की हा रही है। इस तरह असंगति अलंकार बन रहा है। शम्दालंकारों में 'मान' 'मान' में यमक, 'मानु' 'मनु' में लेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। यो मघोनि दिवमुच्चरमाणे रम्भया मलिनिमालमलम्भि / वर्ण एव स खलूज्ज्वलमस्याः शान्तमन्तरमभाषत मङ्गया // 40 //