________________ पञ्चमसर्गः व्याकरण-अजम् अप्सु जायते इति अप+/जन्+डः / चामरम् चमर्याः विकारः (तत्पुच्छनिर्मितत्वात ) इति चमरो+अण् / विलोलनम् वि+Vलुल+णिच् + ल्युट (मावे)। अभएयत/भण+लङ ( कर्मवाच्य ) इसका प्रथम पाद विशेष्यात्मक उपवाक्य कर्म प्रथमान्त बना हुआ है। अनुवाद-चंवर डुलाने के कारण हिल रहे भुज-रूपी नाल वाले हाथ-रूपी कमल से उस (चंवर ) के गिर जाने से तिलोत्तमा भी यह बोल पड़ी कि इस ( चँवर ) को तरह हमारा यहाँ से गिर जाना ही ठीक है // 50 // टिप्पणो-यहाँ भुजा पर नालस्वारोप और कर पर अब्जत्वारोप होने से रूपक है, जो साङ्ग है। विद्याधर ने पतनेन = पतनव्याजेन' अर्थ लेकर पूर्ववत् अपह्नुति भी मान रखी है, जो आर्थ ही है / कवि ने तिलोत्तमा में बोलने की कल्पना कर रखी है, इसलिए यह उत्प्रेक्षा है, जो वाचक के अमाक में प्रतीयमाना ही है। एवम् = चामरवत् में उपमा है। परस्पर निरपेश होने से इन सबकी यहाँ संसृष्टि ही है / 'पतन' 'पतने' में छेक और अन्यत्र वृत्यनुप्रास है / मेनका मनसि तापमुदीतं यस्पिधित्सुरकरोदवहित्थाम् / तत्स्फुटं निजहृदः पुटपाके पक्कलिप्तिमसृजद् बहिरुत्थाम् / / अन्वय-मेनका मनसि उदीतम् तापम् पिधित्सुः (सतो) अवहित्थाम् अकरोत् यत, तक निजहृदः पुट-पाके बहिरुत्थाम् पङ्कलिप्तिम् असृजत् स्फुटम् // 51 // टीका-मेनका एतदमिधाना देवाङ्गना मनसि हृदये उदीतम् उत्सन्नम् तापम् दुःखम् पिधित्सुः पिधातुमिच्छुः सती अवहित्थाम् आकार-गुप्तिम् अकरोत् व्यधात् तत् निजस्य हृदः हृदयस्य पुटे पुटस्य मध्ये पाके पाकक्रियायाम् ( स० तत्पु०) बहिः बाह्यप्रदेशे उत्थाम् जाताम् (सुसुपेति स० ) पङ्कस्य क्लिन्न-मृत्तिकायाः लिप्तिम् लेपम् असृजत् अकरोत् स्फुटम् उत्प्रेक्षायाम् / इन्द्रं भुवं गच्छन्तमालोक्य मेनका तदियोगेन जायमानं हृदयतापं बहिः प्रकटयन्ती तथा गोपायितवती यथा पुटमध्ये ओषधिगत-तापो बहिर्मृत्तिकालेपेन गोपाय्यते इति भावः // 51 // व्याकरण-उदीतम्-उत्+ +क्तः ( कर्तरि ) / पिधित्सुः अपि+Vधा+सन्+3: ( कर्तरि / अपि के अ का मागुरि के मत से विकल्प से लोप / बहिरूस्था-बहिः+उत्+ स्था +कः स का त+टाप लिप्तिम्/लिप्+तिन् ( मावे ) / __ अनवाद-मेनका हृदय में उत्पन्न ताप को छुपाना चाहती हुई जो आकार-गोपन कर बैठी, उससे ऐसा लगता था मानो ( वह ) अपने हृदय के पुटपाक में बाहर से होने वाला गीली मिट्टी का हेप कर गई हो // 51 // टिप्पणी-अंग्रेजी के इस कहावत के अनुसार कि 'चेहरा हृदय की विषय सूची हुआ करता है ( Face is The index of mind ) मेनका के हृदय का ताप मुख पर प्रतिबिम्बित होने लगा, तो उसने झट उसे छुपालिया जिससे कि लोगों को पता न चले। हृदय-मावों के इस तरह के गोपन को साहित्यिक माषामें 'अवहित्था' या 'अवहित्थम्' कहते हैं, देखिए साहित्यद०-'मय-गौरव