________________ पञ्चमसर्गः टिप्पणी-उर्वशी मी इन्द्र का समाचार सुनकर स्तम्ध-हकी-बक्की-रहगई कि यह क्या हो मया / स्तम्म एक सात्विक माव हुश्रा करता है, जिसमें शरीर जड़ हो जाता है। इसके बहाने कवि कल्पना करता है कि उर्वशी का जड़-निश्चल छरहरा शरीर मानो एक स्तम्म ( खम्मा ) हो, जो इन्द्र के प्रेम की समाप्ति की सीमा बना रहा हो। सीमा बताने हेतु खम्भे गाड़ दिए जाते ही है। इस प्रकार यहाँ अपह्न त्युत्यापित उत्प्रेक्षा है, जो प्रतीयमान है। यहाँ कवि यदि 'स्तिमितभाव' के स्थान में 'स्तम्भ' ही रख देता तो अधिक कलात्मकता आ जाती क्योंकि 'स्तम्भ शब्द' 'स्तम्मौ स्थूणा जडीभावी' इस अमरकोष के अनुसार खम्भा और जड़ भाव-दोनों का वाचक है / 'वशी' 'वशी' में यमक, 'समा' 'सोम्नि' तथा 'पुष' पुष' में छेक और अन्यत्र वृत्यनुप्रास है। कापि कामपि बमाण बुभुत्सुं शृण्वति त्रिदशमर्तरि किञ्चित् / एष कश्यपसुतामभिगन्ता पश्य कश्यपसुतः शतमन्युः // 53 // अन्वय-का अपि बुभुत्सुम् काम् अपि त्रिदश-मर्तरि किञ्चित् शृण्वति सत्येव बमाण-'एष कश्यपसुतः शतमन्युः कश्यपसताम् अमिगन्ता' इति पश्य / / टीका-का अपि काचित् देवाङ्गना बुभुस्सुम् 'किं जातम् ?' इति ज्ञातुमिच्छुम् काम् अपि कांचित् अन्यां देवाङ्गनाम् त्रिदशानां देवतानाम् भर्तरि स्वाभिनि (10 तत्पु० ) इन्द्रे इत्यर्थः किश्चित् किमपि शण्वति आकर्षयति सत्येव बमाण उवाच '(हे आलि, ) एषः अयम् कश्यपस्य एतदाख्यस्य ऋषिविशेषस्य सुतः पुत्रः शतमन्युः शतयज्ञकर्ता इन्द्र इत्यर्थः कश्यपस्य सुताम् पृथिवीम् अभिगन्ता लक्ष्यीकृत्य गमिष्यति इति पश्य इन्द्रो दमयन्ती विवोढुम् भवं गच्छतीति मावः / व्यङ्गथार्थश्च कश्यपपुत्रः कश्यपपुत्रीं स्वभगिनीम् अभिगच्छतीति कियदाश्चर्यम् अथवा कश्यम् मदिराम् ('मदिरा कश्य-मद्ये च' इत्यमरः ) पिबतीति तथोक्त: मद्यप इत्यर्थः तस्य कन्याम् कश्यपऋषेः पत्रोऽपि, कृतशतयशोऽपि सन् इन्द्रो गच्छतोति धिक् अथवा.कश्यपस्य मद्यपस्य सुतः कश्यपस्य मद्यपस्य मुतां गच्छेदित्युचितमेव // 53 // ____व्याकरण-बुभुस्सुम् बोद्धुमिच्छतीति /बुध+सन् +डः ( कर्तरि ) / त्रिदशाः इसके लिए पीछे श्लोक 1 देखिए। शगवति Vश्रु+शत+सप्त० / अभिगन्ता अभि+ गम् +छुट् / पश्य इसका कर्म 'पष अमिगन्ता' वाक्य है। अनुवाद-कोई ( देवाङ्गना ) ( यह सब मामला ) जानने की इच्छुक बनी किसी दूसरी को इन्द्र के कुछ-कुछ सुनते-सुनते बोल बैठो- ( बहिन, ) देख, यह कश्यप के पुत्र इन्द्र कश्यप की पुत्रीपृथिवी-को जाने वाले हैं' // 53 // टिप्पणी-विद्याधर के अनुसार कश्यप का पुत्र, सौ यज्ञ करने वाला इन्द्र कश्यप की पुत्री-अपनी बहिन-से ब्याह करने जा रहा है-इसमें विरोध है। कश्यपपत्री का पृथिवी अर्थ करने पर उसका परिहार हो जाता है, इसलिए विरोधामास अलंकार है। वास्तव में इन्द्र के प्रति देवाङ्गना का यह विद्रप है, खूब कसा हुआ व्यङ्गय है। इसमें दूसरा व्यङ्गथ यह भी हुआ है कि कश्यप-शराबी-का कोकरा यदि, कश्यप-शराबी की छोकरी से विवाह करने जावे,तो ठीक ही है / साहित्यिक दृष्टि से इन