Book Title: Naishadhiya Charitam 02
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass

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Page 372
________________ नैषधीयचरिते १.किन्तु हमारे विचार से उत्तरार्ध में कहा गया सार्वभौम सामान्य तथ्य पूर्वाध-गत विशेष बात का समर्थन कर रहा है, इसलिए यह अर्थान्तर-न्यास है। 'कुर्या' 'कार्य' तथा 'पर' 'परा' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। यन्मतौ विमलदर्पणिकायां सम्मुखस्थमखिल खलु सत्त्वम् / तेऽपि किं वितरथेदशमाज्ञां या न यस्य सदृशी वितरीतुम् / / 106 // अन्धय-यन्मतोविमल-दणिकायाम् खलु अखिलम् सत्त्वम् सम्मुखस्थम् ( अस्ति ), ते अपि रिशम् माशाम् विम् वितरथ या यस्य वितरीतुम् सदृशी न ? टीका-येषाम् युष्माकमित्यर्थः मती बुद्धौ ( 10 तत्पु० ) एव विमलायाम् मुकुरिकायाम् ( कर्मधा० ) खलु निश्चयेन भखिलम सर्वम् तच्चम् वस्तु सम्मुखस्थम् सम्मुखं तिष्ठतीति तथोक्तम् ( उपपदे तत्पु० ) प्रत्यक्षमित्यर्थः अस्तीति शेषः ते सर्वशा यूयमित्यर्थः अपि ईदशम् एतादृशीम् दौत्ये नियोजनरूपाम् प्राज्ञाम् आदेशम् किम् कस्मात् वितरथ दत्थ या प्राशा यस्य यस्मै वितरीतुम् दातम् न सदृशी न योग्या अस्ति / अहं दमयन्ती कामये इति मवन्तो जानन्ति अस्माकं दूतो भूत्वा त्वं तामेवं कथय 'नलं न कामयित्वा देवान् कामयस्वेत भवतां मछमीदृशाशादानं सर्वदा नोचितमिति मावः // 106 // व्याकरण-मतौ मन्+क्तिन् ( भावे ) / दणिकायाम् लघुः दर्पण इति दर्पण+टिकच (अल्पार्थ )+टाप् / सम्मुखस्थम् संगतं मुखं येनेति ( प्रादि व० वी० ) सम्मुखं यथास्यात्तथा तिष्ठतीति+ स्था+क-। तत्त्वम् तस्य भाव इति तत् +त्व / ईदशम् इदम् +/दृश् +क्विप् (सीलि.)। समझ में नहीं आता कि मल्लिनाथ "त्यदादिषु-" इत्यादिना दृशेः कञ्पत्ययः कैसे लिख बैठे / कम होता, तो स्त्रीलिंग में ईदृशीम्' बनमा था, ईदृशम् नहीं। आज्ञाम् आ+/ .+अङ् ( भावे )+टाप् / सदशी-यहाँ उपरोक्त प्रकार से समान दृश् +कन और समान को स हुआ है। वितरीतुम् वि+Vत+तुम् इट् को वैकल्पिक दीर्घ / अनुवाद-जिनकी बुद्धिरूपी आरसी में सचमुच सब कुछ वस्तु सामने रहती है, वे ( आष) मी ऐसी आशा क्यों दे रहे हैं, जो जिसके योग्य न हा ? // 106 // टिप्पणी-नल उलाहना देने लगा है कि आपके आगे सकल जगत् हस्तामलकवत् है। आप कर्तव्याकर्तव्य को भी मलीभाँति समझते हैं। आप जानते ही हैं कि मैं दमयन्ती का कामुक हूँ, अन्दरों में सुन्दरतम हूँ, वह मुझे चाहती है फिर क्या उसे कहूँ कि मुझे न वरकर देवताओं को परे ? आपको मेरे लिए ऐसी आशा शोभा नहीं देती है। यहाँ मात पर दणिकास्त्र का प्रारोप होने से रूपक है / 'खिल' 'लु' 'तर' 'तरी' तथा 'दृश' 'दृशी' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। यामि थामिह बरीतुमहो तद्भुततां तु करवाणि कथं वः / ईशां न महतां बत जाता वञ्चने मम तृणस्य घृणापि // 10 // अन्वयः-इह याम् वरीतुम् ( अहम् ) यामि, अहो ! वः तद्-दूतताम् कथं, करवाणि ? दृशाम् महताम् { भवताम् ) तपस्य मम वत्रने घृषा अपि न जाता बत /

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