________________ 274 नैषधीयचरिते च उल्ल यति उन्मूलयति, चान्द्ररुचिकारणादेव तु मदङ्ग दयते, प्राणाश्च निर्गच्छन्तीवेति मावः।। 106 // व्याकरण-रूचिः रुच+क्तिन् ( मावे ) / गोचरः गाव इन्द्रियाणि चरन्ति गच्छन्त्यति गो+/चर्+घञ् ( अधिकरणे) वृद्धयभाव / हृदयाय शपे 'श्लाघह स्याशपां शीप्स्यमानः' अनुवाद-"अरी ! तुम्हारे हृदय को सौगन्ध खाती हूँ यदि तुम चन्द्र के प्रकाश में न हो।" "हे सखी ! ( चन्द्र-) प्रकाश का फल दीख ही रहा है कि यह मेरी चमड़ी को जला रहा है और प्राणों को उखाड़ रहा है" / / 106 / / रिप्पणी-दमयन्ती सखी का समर्थन 1 करती है कि तुम्हारा कहना सही है, लेकिन इसका उच्य स्पर्श ही तो मुझे जला रहा है और यह मेरे लिए दाहक हो है। भले ही यह चन्द्रप्रकाश क्यों न हो। 'रुचे' 'रुचि' तथा 'लय' 'लय' में छक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। विधुविरोधितिथेरमिधायिनीमयि ! न किं पुनरिच्छसि कोकिलाम् ? / सखि ! किमर्थगवेषणया ? गिरं किरति सेयमनर्थमयीं मयि // 107 // अन्वयः-"(हे भैमि !) विधुविरोधितिथेः अभिधायिनीम् कोकिलाम् ननु पुनः किम् न इच्छसि ?" "हे सखि ! अर्थगवेषणया किम् ? सा इयम् मयि अनर्थमयोम् गिरम् किरति / " टीका-"(हे भैमि !) विधोः चन्द्रमसः विरोधिनी शत्रभूता ( 10 तत्पु० ) या तिथि: अमावास्या तस्याः ( कर्मधा० ) अभिधायिनीम् प्रतिपादिकाम् 'कुहू कुहू' शब्दं कुर्वतीम् ('सा नष्टेन्दुकला कुहू' इत्यमरः ) कोकिलाम पिकाम् ननु प्रश्ने पुनः किम् कुतः न इच्छसि भमिलषसि / अर्थात् कोकिका 'कुहू कुहू' शब्दं कृत्वा कुहूशब्दवाच्याम् नष्टेन्दुकला तिथिम् आह्वयति, आगतायो च तस्यां तिथौ चन्द्रामावे तव सुखमेव भविष्यतीति कस्मात् कोकिलो नेच्छसि ?" "हे सखि ! 'कुहू कुहू' शब्दं कृत्वा एषा अमावास्याम् आह्वयतीत्यर्थस्य गवेषण्या विचारप्पया किम् अलम् , कुहूशब्देनाघामावास्थारूपोऽयों नामिधीयते इत्यर्थः, सा इयम् कोकिला मयि विषये न अर्थ: अमावास्यारूप एवेति अनर्थमयी ताम् अथ च अनर्थः दुःखम् तन्मयोम् गिरम् शब्दम् किरति विक्षिपति अर्थात् तस्याः 'कुहू' शब्दः अनर्थः अमावास्यारूपार्थशून्यः इति यावत् अस्ति, अत एव अनर्थ ( दुःख ). करः॥ 107 // __व्याकरण-विरोधी विरुषद्धीति वि+/रुध++णिन् ( कर्तरि ) / अमिधायिनी अमिधने इति अमि+Vषा+पिन् ( कर्तरि )+डोप् / गवेषणा /गवेष् +युच+टाप् / अनुवाद-" (हे भैमी!) चन्द्रमा की शत्रुभूत तिथि (अमावास्या) को ( 'कुहू' शब्द से) पुकारने वाली कोयल को तुम फिर क्यों नहीं चाहती ?" "हे सखो! ( 'कुहू' शम के ) अर्थ पर विचार करने से क्या मतलब ? वह यह कायल अनर्थ (अमावास्यारूप अर्थ का अमाव; अनिष्ट ) वाली ध्वनि निकाल रही है // 107 // टिप्पची-यहाँ प्रश्नोत्तर में रहेष रखकर कविने बड़ा चमत्कार दिखाया है / 'कुहू' शब्द के