________________ पञ्चमसर्ग: पाते हैं. लेकिन खाली हों, तो झट ऊपर चढ़ जाते हैं। मनु के अनुसार 'दशसूना समो नप:' अर्थात् राजे लोग या शासक बड़े पाप किया करते हैं। दस सूनायें-वध्यशालाये, बूचड़खाने-एक तरफ और एक राजा एक तरफ, दोनों तौल में बराबर निकलेंगे। अपने पापों के बोझ से दवे वे नीचे नरक ही जाएँगे, ऊपर (स्वर्ग) नहीं। किन्तु युद्ध में वीर-गति प्राप्त करते ही उनके सभी पाप उनके खून से धुल जाते हैं, जिससे हल्के होकर वे सुगमता से ऊपर ( स्वर्ग) चले जा सकते हैं। यहाँ ऊपर चले जाने का कारण हल्का होना बताया गया है, इसलिए काव्यलिङ्ग है / 'मुदं' 'मुद'. में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। सा भुवः किमपि रत्नमनघं भूषणं जयति तत्र कुमारी / भीमभूपतनया दमयन्ती नाम या मदनशस्त्रममोघम् // 21 // अन्वयः-भुवः भूषणम् , किमपि अनर्घम् रत्नम् सा भीम भूप-तनया दमयन्ती नाम कुमारी तत्र जयति, या अमोघम् मदन-शस्त्रम् ( अस्ति ) / टोका-भुवः जगतः भूषणम् अलङ्कारः किमपि अनिर्वचनीयं विलक्षणमिति यावत् न अघः मूल्यं यस्य तथाभूतम् / नम्ब० व्रो०) रस्नम् मणिः सा प्रसिद्धा भीमश्वासी भूपः नृपः (कर्मधा०) तस्य तनया पुत्री दमयन्ती नामेत्यव्ययम् आख्यायाम् (प० तत्पु० ) कुमारी अविवाहिता कन्या तत्र भुवि जयति सर्वोत्कर्षण वर्तते, या दमयन्ती न मोघम् अमोघम् अपतिहतम् ( नञ् तत्पु०) मदनस्य कामस्य शस्त्रम् आयुधम् अस्तौति शेषः / / 26 // ज्यकारण-भूः--मवन्ति प्राणिनोऽत्रेति V+विप् ( अधिकरणे)। भूषणम् भूष्यतेऽनेनेति Vष् + ल्युट् / प्रघं: अ +घञ् ( भावे ) / रत्नम् यास्काचार्य के अनुसार 'रमणीयं भवतीति रम्+न, तान्तादेश / मदनः मदयत्ति लोकानिति /मद् + णिच् + (नन्द्यादित्वात् ) ल्युः (कर्तरि ) / अनुवाद-जगत की भूषण भूत, अनिर्वचनीय अमूल्य रत्न-रूप वह नृप मीम को पुत्री दमयन्ती नाम की कुमारी वहाँ ( भूपर ) सबको जीते हुए है, जो कामदेव का अमोघ शस्त्र बनी हुई है / / 26 / / : टिप्पणी-यहाँ कवि ने दमयन्ती के रूप में किसी भी लड़की के विवाह योग्यता के सभी गुण, अर्थात कुल, नाम, सौन्दर्य और युवावस्था बता दिए हैं / दमयन्ती पर भूषणत्व, रत्नत्व और मदनशस्त्रत्वों का आरोप रोने से यहाँ हम (मालोपमा की तरह ) माला-रूपक कहेंगे। विद्याधर ने अतिशयोक्ति कही है, जो हमारी समझ में नहीं आ रही है, क्योंकि यहाँ भारोप के विषय और विषयो दोनों शब्दोपात्त--प्रनिगीपं स्वरूप हैं, जो रूपकों को स्पष्ट किये हुए हैं। शम्दालंकार दृस्वनुप्रास है। सम्प्रति प्रतिमुहूर्तमपूर्वा कापि यौवनजवेन भवन्ती / आशिखं सुकृतसारभृते सा क्वापि यूनि भजते किल भावम् // 27 // अन्वय-सम्प्रति सा यौवन-जवेन प्रतिमुहूर्तम् का अपि अपूर्वा भवन्ती आशिखम् मक्त-सारभूते कपि यूनि मावम् भजते किल /