________________ 225 चतुर्थसर्गः हुआ करती है. यदि ऐसा न हो, तो स्त्रियों मृत पति को प्राप्त करने हेतु नियन्त्रण से बाहर होती हुई क्यों ( चिता की ) अग्नि में प्रवेश करती हैं ? टिप्पणी-विरह-जनित पीड़ा में दहनजनित पीड़ा को अपेक्षा अधिकता बताने से व्यतिरेक है। विद्याधर ने अनुमानालंकार कहा है जब कि मल्लिनाथ कार्य से कारण का समर्थन-रूप अर्थान्तर न्यास मानते हैं / शब्दालंकारों में छेक और वृत्त्यनुपास है। हृदि लुठन्ति कला नितराममूर्विरहिणीवधपतकलङ्किताः। कुमुदसख्यकृतस्तु बहिष्कृताः सखि ! विलोकय दुर्विनयं विधोः // 47 // अन्धयः-"विरहिणी-वध-पङ्क-कलङ्किताः अमूः कलाः हृदि नितराम् लुठन्ति, तु कुमुद-सख्यकृतः बहिष्कृताः” ( इति ) हे सखि. विधोः दुर्विनयम् विलोकय / ____टीका-विरहिणीनाम् वियोगिनीनां यो वधः मारणम् (10 तत्पु० ) तस्मात् यः पङ्कः पातकम् (पं० तत्पु० ) ( 'अस्त्रीपंक पुमान् पाप्मा' इत्यमरः ) तेन कलकिताः समुत्पन्नकलङ्काः मलिनिताः इति यावत् ( तृ० तत्पु. ) भमूः एताः कला हृदि अभ्यन्तरे नितराम भृशं लुठन्ति क्रीडन्ति वर्तन्ते इत्यर्थः, तु किन्तु कुमुदैः रात्रि-कमलैः सख्यम् मैत्रीम् ( तृ० तत्पु०) कुर्वन्तीति तथोक्ताः ( उपपद तत्पु० ) निष्कलङ्काः विशुद्धाः इति यावत् कलाः बहिष्कृताः बहिः निस्सारिताः अर्थात् पापिनी: अपकारिकाः कलाः स्त्र मध्ये रक्षति, परोपकारियोश्च निस्सारयति, हे सखि,विधोः चन्द्रस्य अविनयम् पौय॑म् विलोकय पश्य / / 47 / / व्याकरण-कलंकित-कलंकः अस्य संजात इति कलंक+इतच् / सख्यकृतः-सख्यम् सख्युः माव इति सखि+यत्, सख्य+/+क्विप् ( कर्तरि ) / अनुवाद-"विरहिणियों के वध के पाप से कलंकित ये कलाये हृदय में खूब खेल रही है, लेकिन कुमुदों के साथ मैत्री करने वाली कलायें बाहर कर रखी है" हे सखी, चन्द्रमा की धूर्तता देख / / 47 // टिप्पणी-पीछे श्लोक 43 में भूतकाल की क्रिया से प्रतिपादित चन्द्र निन्दा और राहुस्तुति वस्तुतः इस श्लोक से आरम्म होती है इसे चन्द्रमा की धूर्तता हो समझा कि वह कालो-निरपराधों की कातिल-कलाओं को तो हृदय से लगाये रहता है जबकि कुमुदों का विकास करके भलाई करने वाली कलाओं को अपने से दूर रखता है। सज्जन लोग तो परोपकारियों को अपने हृदय से लगाते हैं और भपकारियों को दूर रखते हैं किन्तु चन्द्रमा में उल्टी हो बात है। दुर्जन जो ठहरा / चन्द्रमा का काला दाग पाप का प्रतीक और वह भाग जो ज्योत्स्मा के रूप में कुमुदों को विकसित करता है, उपकार का प्रतीक बताया गया है / जड़ चन्द्रमा पर चेतनन्यवहार-समारोप होने के कारण यहाँ समोसोक्ति अलंकार है। 'कृत-कृता' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। अयि विधुं परिपृच्छ गुरोः कुतः स्फुटमशिक्ष्यत दाहवदान्यता। ग्लपितशम्भुगलाद्गरलात्वया किमुदधौ जड ! वा बडवानलात् // 4 //