________________ 262 नैषधीयचरिते प्रेयसी सत्यमामा के उद्यान में लगा दिया था। विद्याधर ने यहाँ हेतु अलंकार माना है। शब्दालंकार वृत्यनुपास है। कुसुममप्यतिदुर्णयकारि ते किमु वितीर्य धनुर्विधिरग्रहीत् / किमकृतैष यदेकतदास्पदे द्वयमभूदधुनापि नलभ्रुवोः // 9 // अन्वयः-विधिः कुसुमम् अपि प्रतिदुपयकारि धनुः ते वितीयं अग्रहीत किमु ? एष तव किम् अकृत ? हि अधुना एकतदास्पदे नल-भ्रुवौ दयम् अभूत् / टीका-विधिः विधाता कुसुमम् पुष्पम् अपि अतिशयेन दुर्षय इत्यतिदुर्णयः (प्रादि तत्पु० ) तं करोतीति तथोक्तम् ( उपपद तत्पु० ) धनुः चापम् ते तुभ्यम् वितीर्य दत्त्वा अग्रहीत् पुनः गृहीतवान् किमु इति संभावनायाम् तुभ्यं पुष्पधनुर्दत्वा पुनराच्छिन्नवानित्यर्थः एष ते तव किम् भकृत कृतवान् न किमपीति काकु: धनुराच्छिद्य तव न कमप्यपकारमकरोदिति भावः, हि यत: अधुना पनुषि आच्छिन्नेऽपि एकं च तत् इत्येकतत् ( कर्मधा० ) तस्य प्रास्पदे स्थाने ( 10 तत्प० ) नलस्य भ्रवौ ( 50 तत्प० ) द्वयम् द्वे अभूत् नातम् त्वत्पाश्र्वात् एकं धनुराच्छिद्य नल-भ्रूरूपेप धनुयं विधाय तुभ्यं,दत्वा भपकारस्य स्थाने तवोपकार एव कृत इति भावः / / 91 // ___व्याकरण-०दुर्णयः-नारायण के अनुसार यहाँ 'उपसर्गादसमासेऽपि पोपदेशस्य (8 / 4 / 14) से न को पत्व हुआ है किन्तु म० म० शिवदत्त के अनुसार यहाँ पत्व व्याकरण के विरुद्ध है, क्योंकि 'सुदुरोः प्रतिषेधो नुम् विधिनत्वषत्वष्णत्वेषु' इस वार्तिक ने दुर के माथ पत्व का प्रतिषेध कर रखा है। वार्तिककार ने णत्वप्रतिषेव का उदाहरण यही दिया है-'पत्वम्'-दुर्नयम् , दुर्नीतमिति' / भाष्यकार का मो कहना यही है-'उपसर्गात्- 'इति पत्वं मा भूदिति'। इसलिए मल्लिनाथ आदि ने दुर्नया हो पाठ दिया है। द्वयम् द्वौ अवयवी अत्रेति द्वि+तयप , तयप् को विकल्प से अयच्, अयच् के अमाव में द्वितयम् बनेगा। ___ अनुवाद-विधाता ने पुष्प होते हुए भी महान् अपकारी धनुष तुझे देकर ( फिर ) वापस ले लिया क्या ? इस ( विधाता ) ने तेरा क्या किया ? क्योंकि अब उस एक ही धनुष के स्थान में नल के दो मौह हो गए हैं // 11 // __ टिप्पणी-यहाँ प्रथमाध में यह कल्पना की गई है कि मानो फूल का धनुष मी ब्रह्मा ने दुष्ट कामदेव से वापस ले लिया, अतः उत्प्रेक्षा है, लेकिन बाद में एक धनुष के स्थान में कामदेव के पास दो धनुष हो गए जो नल के दो ध्र-रूप थे। इस तरह धनुष और मौहों में भेद होते हुए भी कवि ने यहाँ दोनों में अमेदाध्यवसाय कर दिया है, अतः मेदे अमेदातिशयोक्ति है। भाव यह है, कि कामदेव दमयन्ती को नल के मौंहों की याद दिलाकर उसे और मो तंग करने लगा है / शब्दालंकार वृत्त्यनुपास है। पड़तवः कृपया स्वकमेककं कुसुममक्रमनन्दितनन्दनाः। ददति यद्भ वते कुरुते मवान् धनुरिवैकमिषूनिव पञ्च तैः // 92 // 1. दुर्नय०। 2. षड् मवते /