________________ चतुथसगः 209 था। इस तरह यहाँ कपोल और चन्द्रमा के एक-वर्ष होने से दोनों का एकत्व बताया गया, अतः मल्लिनाथ के अनुसार सामान्यालंकार है। सामान्य वहाँ होता है, जहाँ गुण-साम्य से एक वस्तु की दूसरी वस्तु के साथ एकता दिखाई दे। चन्द्रमा ने अपने धम्बे का कालापन कपोल पर संक्रमित कर दिया है, इसलिए विद्याधर ने यहाँ तद्गुणालंकार माना है। यह वहां होता है, जहाँ एक वस्तु का गुण दूसरी बस्तु में चला जाय। चन्द्रमा ने मुख को अपना मित्र बना दिया है-इस स्थल में यदि दण्डी के अनुसार मित्र शब्द को लाक्षणिक मान कर सादृश्यपरक ले ले तो इसे हम उपमा कहेंगे, किन्तु यदि इसका मुख्यार्थ ही लें, तो यहाँ चेतनीकरण हो जाता है। कोई भी व्यक्ति संगति के कारण अपना मला या बुरा गुष्प दूसरे में मी उत्पन्न कर देता है। काले दाग वाला चन्द्रमा मुख में मी काला दाग उत्पन्न कर बैठा / इस तरह हमारे विचार से यह समासोक्ति हो जाएगी। 'सखं' 'सुख' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। विरहतापिनि चन्दनपांसुभिर्वपुषि सार्पितपाण्डिममण्डना / विषधरामबिसामरणा दधे रतिपतिं प्रति शम्भुविभीषिकाम् // 27 // अन्वयः-प्ता विरह-तापिनि वपुषि चन्दन-पासुभिः अपित-पाण्डिम-मण्डना विषधराम-बिसामरण (च) सती रतिपतिम् प्रति शंभु-विभीषिकाम् दधे। टीका--सा दमयन्ती विरहेण वियोगेन तपति ज्वरतीति तथोक्ते ( उपपद तत्पु० ) अथवा विरहेण तापोऽस्यास्तीति तथोक्ते वपुषि शरीरे चन्दनस्य मलयजस्य पांसुमिः रजोमिः अर्पित दत्तं सम्पादितमित्यर्थः पाण्डिमा पाण्डुत्वम् एव मण्डनम् अलंकरणम् ( उभयत्र कर्मधा० ) यस्याः तथाभूता (ब० वी०), विषधराणाम् सर्पाणाम् आमा कान्तिः (10 तत्पु०) इव प्रामा ( उपमान तत्पु० ) येषां तथाभूतानि (ब० वी० ) बिसान्येव आभरणानि ( कर्मधा० ) यस्याः तथाभूता (ब० बो०) सती रत्याः पतिम् भर्तारम् काममित्यर्थः (10 तत्पु०) शम्मोः महादेवस्या विमोषिकाम् मयानकताम् दधे धृतवती अङ्गीकृतवतीति यावत् / चन्दनरजो मस्मेव, बिसानि सर्पा इव प्रतीयमानानि सन्ति कामे मयात्पादनार्थ दमयन्तीं शम्भुतुल्योकुर्वन्ति स्मेति भावः // 27 // व्याकरण-पाण्डिमा पाण्डोः माव इति पाण्डु +इमनिच् / विषधराः धरन्तीति धराः + अच् ( कर्तरि ) बिषस्य धराः। विभीषिकाम् वि+/मो+पिच्+घुगागम + ल्युट (मावे)+ टाप / शम्भुविभीषिकाम्-'तृजकाभ्यां कर्तरि' ( 2 / 2 / 15 ) सत्र से कर्बर्थ में तृच और बक् (ल्युट ) प्रत्यय वाले शब्दों के षष्ठी-समाप्त का निषेध कर देता है, अतः यहाँ समास नहीं होना चाहिर था। यहो शङ्का मट्टोजी दीक्षित ने भी उठा रखी है-'कथं तहिं घटानां निर्मातुसिभुवनविधातुश्च कलहः ?' स्वयं उत्तर मी दिया-शेषषष्ठया समासः' इति कैयटः'। थहो समाधान यहाँ मो समझिए। इस तरह यहाँ शैषिको षष्ठी से समान है, कर्तरि षष्ठी से नहीं। ___ अनुवाद-विरह से तप रहे शरीर पर चन्दन-चूर्ण का श्वेत मण्डन किए, ( तथा ) मोंजैसे श्वेत मृणालों का आभरण बनाए वह ( दमयन्ती ) कामदेव के प्रति महादेव की भीषणता अपना बैठो // 27 //