________________ तृतीय अनुवाद-शत्रओं के रुधिरों से रए-क्षेत्रों के नदोमातृक भूमियां बन जाने पर उस (नल) की वाप-परम्परा रूपी सपो के रिये रान समूहों के प्राणों के रूप में खूब खाच-समृद्धि होती रहती है // 38 // टिप्पणी-नदीमातृकभूमि-खेती की ज़मीन दो प्रकार की होती है-नदीमातृक और देवमातृक / जहाँ नदी-नहरों से सिंचाई होती है, वह नदीमातृक होती है, किन्तु जहाँ नदो-नहरों से सिचाई नहीं होती वह देवमातृक होती है। देव मेघों को बोलते हैं। मेध-वृष्टि से ही उनका सिंचन होता है। उसे 'ऊषड़' (ऊपर ) भूमि भी कहते हैं, देखिए भमरकोश-देशो नद्यम्बु-वृष्टयम्नु सम्पन्न-ब्रोहि-पालितः / स्यान्नदीमातृको देवमातृकश्च यथाक्रमम् // यहाँ संग्राम-भूमियों पर नदीमातकदेशत्वारोप. नल के बाणों पर सर्पस्वारोप और शत्रु राजाओं के प्राणों पर खाद्य-समृद्धित्वारोप होने से समस्तवस्तु-विषयक रूपक है। 'सुमिः' 'सुमि' में छक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। यशो यदस्याजनि संयुगेषु कण्डूलमावं भजता भुजेन / हेतोर्गुणादेव दिगापगालीकूलंकषत्वव्यसनं तदीयम् // 39 // अन्वयः-कण्डूलभावम् भजता अस्य भुजेन संयुगेषु यत् यशः प्रजनि (तत्) तदीयम् दिगापगा.. व्यसनम् हेतोः गुणात् एव (जातम् ) / टीका-व.ण्डूलस्य कण्डूयुक्तस्य मावं रण-कण्डूर त्वमित्यर्थः भजता प्राप्नुवता अस्य नलस्य भुजेन बाहुना स्युगेषु युद्धेषु ( 'संप्रहारामिसंपातकल-संरफोट-संयुगाः' इत्यमरः) यत् यशः कोतिः अजनि बनितम् तत् तदीयं यशःसम्बन्धि दिशः एव आपगाः नद्यः (कर्मधा० ) तासाम् आली पंक्तिः तस्याः फूलं तीरम् ( उमयत्र प० तत्पु०) कषति घर्षतीति तथोक्तस्य ( उपपद तत्पु० ) भावः तत्त्वम् एवं व्यसनम् आसक्तिः ( कर्मधा०) हेतोः समवाय-कारणस्य गुणात् एव जामिति शेषः / नलस्य भुजे युद्धकप्डूरत्वं गुणः, तद्भुजेन च युद्धे यशो जनितम् , भुजगतकण्डूलत्वं कायें यशास समागतम् यतस्तदपि दिशारूपनदीकूलानि कर्षात, 'कारणगुणाः कार्य-गुणान् आरभन्ते' इत्यस्ति न्यायसिद्धान्तः। युद्धेऽजितं नलयशः सर्वासु दिक्षु प्रससारेति मावः // 39 // ___ व्याकरण-कण्डूल कण्डू अस्यास्तीति क.ण्डू+लच् ( मतुवर्थीय ) / अनि /जन्+ पिच + लुङ ( कर्मवाच्य ) / तदीय तस्येदमिति तत् +छ, छ को ईय। श्रापगा अपां ( जलस्य ) समूहः आपम् तेन गच्छत्तीति आप+ गम् +:+टाप् / कूलङ्कष-वूलं ( तीरं ) कपतीति कल+/कष् +खश, मुम् आगम।। अनुवाद-(युद्ध हेतु ) खुजली को प्राप्त हुई उस ( नल ) को भुजा ने युद्धों में जो यश उत्पन्न किया है, उस ( यश ) मे भी दशारूपी नदियों के तीरों के रगड़न के व्यसन के रूप में पाई हुई खुजली ऐसी लगती है मानो वह कारण ( भुजा ) के गुण ( खुजली ) से ही आई हो // 39 // टिप्पणी-यहाँ कवि का न्यायशास्त्र की ओर संकेत है। वहाँ 'कारणगुणाः कार्यगुणानारमन्ते' वाला नियम है। यश के कारण भूत बाहु में खुज्ली -गुण है। बाहु से यश-रूप काय उत्पन्न हुमा,