________________ नैषधीयचरिते किरणों को न सह सकी। विद्याधर ने यहाँ विरोधालंकार माना है / हृदय पर दृषत्वारोप में रूपक स्पष्ट ही है। 'स्फुट' 'स्फुटी' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुपास है / हृदयदत्तसरोरुहया तया क सदृगस्तु वियोगनिमग्नया। प्रियधनुः परिरभ्य हृदा रतिः किमनुमर्तुमशेत चितार्चिषि // 21 // अन्वयः-वियोग-निमग्नया, (अत एव ) हृदय-दत्त-सरोरुहया तया सदृक् क प्रस्तु ? रतिः हुदा प्रिय-धनुः परिरम्य अनुमर्तुम् चिताचिंषि किम् अशेत ? टीका-वियोगे प्रिय-विरहे निमग्ना विरहाग्निमग्नेत्यर्थः ( स० तत्पु० ) अत एव हृदये वक्षसि दत्तं निहितम् (स० तत्पु०) सरोरुहं कमलं ( कर्मधा० ) यया तथाभूतया (ब० वी० ) तया दमयन्त्या सहक सदृशी क संसारस्य कस्मिन् प्रदेशे प्रस्तु न कुत्रापीति काकुः / रतिः तत्सदृशी स्यादिति चेन्न, यतः रतिः कामपत्नी हृदा वक्षसा प्रियस्य कामदेवस्य धनुः पुष्परूप-चापम् परिरभ्य आश्लिष्य पस्युः पौष्पं धनुः वक्षसि निधायेत्यर्थः अनुमर्तुम् पत्युः अनुगमनं कर्तुम्, परयुः पश्चात् स्वयमपि मरणार्थमिति यावत् चिताया अर्चिषि अग्निज्वालायाम् (प. तत्पु०) किम् अशेत यितवती? नेति काकुः // 21 // ___ व्याकरण-सरोरुहम् सरसि रोहतीति सरस् + रुह+कः ( कर्तरि ) सहक समाना दृश्यते इति समान+/दृश्+ विन, समान को स आदेश। भशेत/शो+लङ् / अनुवाद-(प्रिय को ) वियोग ( की अग्नि ) में डूबी, ( अत एव ) छाती पर ( शैत्य हेतु ) कमल को रखे उस ( दमयन्ती ) के समान स्त्री कहाँ होगी ? रति प्रिय ( कामदेव ) के ( पुष्परूप ) धनुष को छाती से लगाकर क्या चिताग्नि में सोई थी ? // 21 // टिप्पणी-दमयन्ती स्वस्थ अवस्था में ही अनुपम सुन्दरी थी; विरहाग्नि में पड़ी, क्षीण एवं शीतोपचार हेतु छाती पर कमल रखे अवस्था में भी वह अतुलनीय हो बनी रही। हाँ, रति यदि महादेव द्वारा उसके पति के मस्म कर दिये जाने पर उसका पुष्प-धनुष छाती पर रखकर सती होती तो वह दमयन्तो की उस अवस्था में तुलना के लिए आ सकती थी, परन्तु वह सती हुई ही नहीं। क्षत्रियों में यह प्रथा है कि पति के मरने पर उसकी पत्नी पति का धनुष-बाण आदि शस्त्र छाती पर रखकर पति के साथ चिता में भस्म हो जाती थी। दमयन्ती का उपमान न होने से यहाँ अनन्वयालंकार है, लेकिन विद्याधर उत्प्रेक्षा मानते हैं। 'किम्' शब्द उत्प्रेक्षा-वाचक भी होता है, अर्थ यह होगा 'छाती पर कमल रखे, विरहाग्नि में जलतो हुई दमयन्ती ऐसी लग रही थी मानो लाती पर पति का पुष्प-धनुष रखकर कामदेव की पत्नी रति चिताग्नि में सोई हो।' शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। अनलमात्रमियं स्वनिवासिनो न विरहस्य रहस्यमबुद्धयत / प्रशमनाय विधाय तृणान्यसून ज्वलति तत्र यदुज्झितुमैहत // 22 // अन्वयः-इयम् स्व-निवासिनः विरहस्य रहस्यम् अनलभावम् न अबुध्यतः यत् तत्र जलति सति ) असून् तृणानि विधाय प्रशमनाय उज्झितुम् ऐहत /