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१६ . श्री लँखेचू समाजका इतिहास * लगवाई हुई है । ७६ नं० बडतल्ला स्ट्रीटमें निजी बाड़ी
और गद्दी है, ये भी पोद्दार गोत्रीय लम्बकञ्चक लँबेचू जातिके हैं। जो जिन मन्दिर बड़ा विशाल हतिकांति में है और वहां जैनियोंके घर न रहनेसे वहांसे जिन प्रतिमाओंका समूह समवसरण इटावा गाढ़ीपुरा धर्मशाला जिन मन्दिरमें बैलगाड़ियोंद्वारा सब प्रतिमा लाकर उन्होंने पधराई है। हंतिकांतिकी प्रतिमायें प्रायः बहुत जगह गई हैं। लोगोंने अपने-अपने मन्दिरोंमें विराजमान की हैं। श्री बाबू ताराचन्द परियाने ऊँटपे लेजाकर श्री सूरीपुर जिन मन्दिरमें भी दो प्रतिमायें विराजमान कराई हैं। सूरीपुर और हन्तिकांतिको बहूत थोडा चार-पांच कोसका फासला है। ___ काशी बनारस के भदेनीघाटके निकट भेलूपुरमें खड़सेन उदराज तीनमुनया गोत्रीय लबेचूका बनाया हुआ जिन मन्दिर है। वहाँ १६२५ के संवतमें उन्होंने बिम्ब प्रतिष्ठा कराई थी, उन प्रतिभाओंपर लेख है। उसमें भी लिखा है लम्बकाञ्चुकान्वये तीन मुनया गोत्र खड़गसेन उदराजन प्रतिष्ठा कारापिता । उस जिन मन्दिरके मालिक दत्तक पुत्र सूर्यमल मौजूद हैं। एक प्रतिमो सोनागिरिमें भी इनकी है उसपर भी यही लेख है।