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जैन बौद तत्यान।
[३ सर्व प्रकारके चिन्तवनको छोडता है वही उस स्वानुभवको पहुंचता है। जिससे मूल पदार्थ जो आप है सो अपने हीको प्राप्त होजाता है। यही निर्वाणका मार्ग है व इसीकी पूर्णता निर्वाण है।
बौद्ध ग्रंथों में निर्वाणका मार्ग आठ प्रकार बताया है। १सम्यग्दर्शन, २-सम्यक् संकल्प ( ज्ञान ), ३-सम्यक् वचन, ४सम्यक् कर्म, ५- सम्यक् आजीविका, ६-सम्यक व्यायाम, ७-सम्यक स्मृति, ८-सम्यक समाधि ।
सम्यक् समाधिमें पहुंचनेसे स्मरण का विकल्प भी समाधिके सागरमें डूब जाता है । यही मार्ग है जिसके सर्व पासव या राम देष मोह क्षय होजाते हैं और यह निर्वाणरूप या मुक्त होजाता है। वह निर्वाण कैसा है, उसके लिये इसी मज्झिमनिकायके अरिय परिएषन सूत्र नं० २६ से विदित है कि वह "अजातं, अनुत्तर, योगक्खेमं, अजरं, भव्याधि, अमतं, अशोकं, असंश्लिष्टुं निव्वाणं अधिगतो, अधिगतोखो मे अयंधम्मो दुद्दसो, दुरन वांधो, संतो, पणीतो, मतकावचरो, निपुणो, पंडित वेदनीयो । " निर्वाण भजात है पैदा नहीं हुई है अर्थात् स्वाभाविक है, अनुपम है, परम कल्याणरूप है या ध्यान द्वारा क्षेमरूप है, जरा रहित है, व्याधि रहित है, मरण रहित है, अमर है, शोक व क्लेशोंसे रहित है। मैंने उस धर्मको जान लिया जो धर्म गंभीर है, जिसका देखना जानना कठिन है, जो शांत है, उत्तम है, तर्कसे बाहर है, निपुण है, पण्डितोंके द्वारा अनुभवगम्य है। पाली कोषमें निर्वाणके नीचे लिखे विशेषण हैं--
मुखो (मुख्य), निरोधो (संसारका निरोध), निव्वानं, दीपं, तण्हक्लम (तृष्णाका क्षय), तानं (रक्षक), लेनं (कीनता) भरूप,
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