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जैन बौद्ध तत्वज्ञान।
(२५) मज्झिमनिकाय महातृष्णा
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क्षय सूत्र |
विज्ञान
१ गौतमबुद्ध कहते हैं जिस जिस प्रत्यय ( निमंत ) से होता है वही वहीं उसकी सज्ञा ( नाम ) होती है । उत्पन होता है। चक्षुर्विज्ञान ही
चक्षु के निमिन रूपये विज्ञान
उसकी संज्ञ होनी है। इसी तरह त्र प्राण, व्हिा, कायक निमिचसे जो विज्ञन उत्पन्न होता है उपकी श्रोत्र विज्ञान, घाण विज्ञान, रस विज्ञान, काय विज्ञान संज्ञ होती है । मनके निमंत धर्म ( उपरोक्त बाहरी पांच इन्द्रियों से प्राप्त ज्ञान ) में जो विज्ञान उत्पन्न होता है वह मनोविज्ञान नाम पाता है ।
जैसे जिस जिस निमित्त से लेकर आग जलती है वही वही उसकी संज्ञा होती है। जैसे कष्अमि, तृम अमि, गोमप अभि सुष भनि, कूड़े की भाग, इत्यादि ।
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२ - भिक्षुओ ! इन पांच संघको ( रू वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान ) ( नोट-रूप (matter ) है | वेदनादि विज्ञनमें गर्भित हैं, उस विज्ञानको nind कहेंगे । इस तह रूप और विज्ञान के मेल से ही सारा संसार है ) उत्पन्न हुआ देखते हो ! हां! अपने भाहारसे उत्पन्न हुआ। देखते हो ! हो ! जो उन्होनेवाला है वह अपने आहार के ( स्थिति आवर) निशेधसे विरुद्ध होनेवाला होता है ? हां ये पांच उत्पन्न हैं । व अपने भाहारके निरोवसे विरुद्ध होनेवाले हैं ऐसा संदेश दिन जानना ३ - सुदृष्टि (सम्यक्दर्शन) है । हा ! तुम ऐसे परिशुद्ध उज दृष्ट (दर्शन ज्ञान) में भी आसक्त होगे स्मोगे - यह मेरा धन है
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