Book Title: Jain Bauddh Tattvagyan Part 02
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 266
________________ मौन बैद तत्वज्ञान। [२५३'. (१) उत्तम क्षमा-कृष्ट पानेपर भी क्रोध न करके शांत भाव रखना। (२) उत्तम मार्दव-अपमानित होनेपर भी मान न करके कोमल भाव रखना। (३) उत्तम आर्जव-बाधाओंसे पीडित होनेपर भी मायाचारसे स्वार्थ न साधन', सरल माव रखना । (४) उत्तम सत्य-कष्ट होने पर भी कभी धर्मविरुद्ध वचन नहीं कहना। (५) उत्तम शौच-संसारसे विरक्त होकर लोमसे मनको मेला न करना । ३ (६) उत्तम संयम-पांच इन्द्रिय व मनको संवरमें रखकर इंद्रिय संयम तथा पृथ्वी, जल, तेज, वायु, वनस्पति व स कायके धारी जीवोंकी दया पालकर प्राणी संयम रखना । (७) उत्तमतप-इच्छाओं को रोककर ध्यानका अभ्यास करना। (८) उत्तम त्याग-समयदान तथा ज्ञानदान देना । (९) उत्तम आकिंचन्य-ममता त्याग कर, सिवाय मेरे गुट स्वरूपके और कुछ नहीं है ऐसा भाव रखना। : (१०) उत्तम ब्रह्मचर्य-बाहरी ब्रह्मचर्यको पालकर भीतर ब्राचर्म पालना। बारह तप-"अनशनावमौदर्यत्तिपरिसंख्यानरसपरिस्यागविविक्तशय्याशनकायक्लेशा बाह्यं तपः॥१९॥ प्रायश्चितविनयवैय्यात्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् ॥ २० ॥ १० ९त० सूत्र । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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