Book Title: Jain Bauddh Tattvagyan Part 02
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 264
________________ बन बौद्ध तत्वज्ञान। [२४१ (१९) अपना सामान स्वयं लेकर चलता है. (२०) पांच इन्द्रियों को व मनको संवररूप रखता है, (२१) प्रमाद रहित मन, वचन, कायकी क्रिया करता है, (२२) एकांत स्थान वनादिमें ध्यान करता है, (२३) लोभ द्वेष, मानादिको आलक्ष्य व संदेहको त्यागता है, (२४) ध्यानका अभ्यास करता है. (२५) वह ध्यानी पांचों इन्द्रियों के मनके द्वारा विषयों को जानकर उनमें तृष्णा नहीं करता है, उनसे वैराग्ययुक्त म्हनेसे अगामी का भव नही बनता है, यही मार्ग है, जिससे संसारके दुःखों का अंत होजाता है, जैन सिद्धांतमें भी साधुपदकी आवश्यक्ता बताई है । विना गृहका आरम्भ छोड़े निराकुल ध्यान नहीं होसक्ता है। दिगम्बर जैनोंक शास्त्रों के अनुसार जहांतक खंडवस्त्र व लंगोट है वहांतक का क्षुल्लक या छोटा साधु कहलाता है। जब पूर्ण नम होता है तब साधु कहल ता है। श्वेतांबर जैनोंके । शास्त्रोंके अनुसार नम साधु जिनकल्पी साधु व वस्त्र सहित साधु स्थविकल्पी साधु कहलाता है। साधु के लिये तेरह प्रकारका चारित्र जरूरी है पांच महावत, पांव समिति, तीन गुप्ति। पांच महाव्रत-(२) पूर्ण ने अहिंसा पालना, रागद्वेष मोह छोड़कर भाव अहिंसा, व त्रस-स्थावरकी स६ संकल्पी व आरम्भी हिंसा छोड़कर द्रव्य अहिंसा पालना अहिंसा महावत है, (२) सर्व प्रकार शास्त्र विरुद्ध वचन का त्याग सत्य महावत है, (३) परकी विना दी वस्तु लेने का त्याग अचौयं महावत है, (४) मन वचन काय, कृत कारित अनुमतिसे मैथुन का त्याग ब्रह्मचर्य महावत है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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