Book Title: Jain Bauddh Tattvagyan Part 02
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 267
________________ दसरा माग। बाहरी छ: तप-जिसका सम्बन्ध शरीरसे हो व शरीरको वश रखने के लिये जो किये जावें वह बाहरी तप हैं। ध्यान के लिये स्वास्थ्य उत्तम होना चाहिये । मालस्य न होना चाहिये, कष्ट सहनेकी आदत होनी चाहिये। (१) अनशन-उपवास-खाद्य, स्वाद्य, लेह्य, पेय चार प्रकार माहारको त्यागना । कभी२ उपवास करके शरीरकी शुद्धि करते हैं। (२) अवमोदय-भूख रखकर कम खाना, जिससे मालस्य क निद्राका विजय हो। (३) वृत्तिपरिसंख्यान-भिक्षाको जाते हुए कोई प्रतिज्ञा लेता । विना कहे पूरी होनेपर भोजन लेना नहीं तो न लेना मनके रोकनेका साधन है। किसीने प्रतिज्ञा की कि यदि कोई वृद्ध पुरूष दान देगा तो लेंगे, यदि निमित्त नहीं बना तो आहार न लिया। (४) रस परित्याग-शक्कर, मीठा, लवण, दूध, दही, घी, तेल, इनमेंसे त्यागना । (५) विविक्त शय्यासन-एकांतमें सोना बैठना जिससे ध्वान, स्वाध्याय हो । ब्रह्मचर्य पाला जासके । बन गिरि गुफादिमें रहना। (६) कायक्लेश-शरीरके मुखियापन मेटनेको विना क्लेश अनुभव किये हुए नाना प्रकार भासनोंसे योगाभ्यास स्मशानादिमें निर्भय हो करना। छ. अंतरङ्ग तप-(१) प्रायश्चित्त-कोई दोष लगने पर दंड ले शुद्ध होना, (२) विनय--धर्ममें व धर्मात्माओंमें भक्ति करना, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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