Book Title: Jain Bauddh Tattvagyan Part 02
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 275
________________ लेखककी प्रशस्ति । 50+ दोहा | भरतक्षेत्र विख्यात है, नगर लखनऊ सार । अग्रवाल शुभ वंशमें, मंगलसैन उदार ॥ १ ॥ तिन सुत मक्खनलालजी, तिनके मुत दो जान । संतूमल हैं ज्येष्ठ अब, लघु ' सीतल' यह मान ||२॥ विद्या पढ़ गृह कार्यसे, हो उदास वृषहेतु । बत्तिस वय अनुमानसे, भ्रमण करत सुख हेतु || ३ || उन्निस सौ पर बानवे, विक्रम संवत् जान | वर्षाकाल विताइया, नगर हिसार स्थान ॥४॥ नन्दकिशोर सु वैश्या, बाग मनोहर जान । तहां वास सुखसे किया, धर्म निमित्त महान ॥५॥ मन्दिर दोय दिगम्बरी, शिखरबन्द शोभाय । नर नारी तह प्रेमसे, करत धर्म हितदाय ||६|| कन्याशाळा जैनकी. पबलिक हित है जैनका. पुस्तक आलय थान ॥७॥ जैनी गृह शत अधिक हैं, अग्रवाल कुळ जान । मिहरचंद कूडूमलं, गुलशनराय सुजान ॥ ८॥ पंडित रघुनाथ सहायजी, अरु कश्मीरीलाल । अतरसेन जीरामजी, सिंह रघुवीर दयाल ॥ ९॥ महावीर परसाद है, बांकेराय है, बांकेराय वकील | शंभूदयाळ प्रसिद्ध हैं, उग्रसेन सु वकील ॥१०॥ बाळकशाला जान । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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