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मैन बौद्ध तत्लान। . [२४५ (३) वैय्यातुत्य-रोगी, थके, वृद्ध, बाल, साधुनों की सेवा करना, (४) स्वाध्याय-ग्रंथोंको भावसहित मनन करना, (५) व्युत्सर्गभीतरी व बाहरी सर्व तरफकी ममता छोड़ना, (६) ध्यान-चित्तको रोककर समाधि प्राप्त करना । इसके दो भेद हैं-सविकल्प धर्मध्यान, निर्विकल्प धर्मध्यान ।
धर्मके तत्वोंका मनन करना सविकल्प है, थिर होना निर्विकल्स है । पहला दुसरेका साधन है। धर्मध्यानके चार भेद हैं
(१) आज्ञाविचय-शास्त्राज्ञाके अनुसार तत्वोंका विचार करना।
(२) अपायविचय-हमारे राग द्वेष मोह व दुसरोंके रागादि दोष कैसे मिटें ऐसा विचारना ।
(३) विपाकविचय-संसारमें अपना व दुसरोंका दुःख सुख विचार कर उनको कोका विषाक या फल विचार कर समभाव रखना।
(४) संस्थानविचय-लोकका स्वरूप व शुद्धात्माका स्वरूप विचारना ध्यानका प्रयोजन स्वानुभव या सम्यक् समाधिको पाना है। यही मोक्षमार्ग है, निर्वाणका मार्ग है।
आष्टांगिक बौद्ध मार्गमें रत्नत्रय जैन मार्ग गर्मित है।
(१) सम्यग्दर्शनमें सम्यग्दर्शन गर्भित है। (२) सम्यक संकल्पमें सम्यग्ज्ञान गर्मित है। (३) सम्यक् वचन, सम्यक कर्म, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक् समाधि, इन छहमें सम्यक चारित्र गर्भित है। वा रत्नत्रयमें मष्टांमिक मार्ग गर्मित है। परस्पर समान है। यदि निर्वा
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