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दुसरा मांग। होजावें । वह इस प्रकार रागद्वे में पड़ा सुखमय, दुःखमय या न मुखदुःखमय विस किसी वेदनाको वेदन करता है उसका वह ममिनन्दन करता है, मवगाहन करता है । इस प्रकार अभिनन्दन करते, अभिवादन करते अवगाहन करते रहते उसे नन्दी (तृप्णा) उत्पा होती है । वेदनामों के विषय में जो यह नन्दी है वही उसका उपादान है, आके उपादान के कारण भव होता है, भव के कारण जाति, जातिहे. कारण जरा माण, शोक, कंदन, दुःख, दौमनस्य होता है। हमी प्रहार श्रोत्रमे, घ्र णसे, जिहासे, कायासे तथा मनसे प्रिय धर्मों को जानकर रागद्वेष करनेसे केवल दुख कंधकी उत्पत्ति होती है। : (दुःख स्कंधके क्षयका उपाय) ... . १०-क्षुिओ! यहां लोक में तथागत, अत्, सम्यक्सम्बुद्ध, विद्या भाच ण् युक, सुगत, लोक विदु, पुरुषों के अनुपम च बुक सवार, देवताओं और मनुष्यों के उपदेष्टा. भगवान् बुद्ध उत्पन्न होते हैं वह ब्रह्मलोक, मारलोक, देवलोक सहित इस लोकको, देव, मनुष्य सहित श्रमण ब्रहणयुक्त सभी प्रजाको स्वयं समझकर साक्षकार कर धर्म को बतलाते हैं। वह भादिमें कल्याणकारी,
4 में कस्याणकारी, अत्तमें कल्याणकारी धर्मको अर्थ सहित व्यंजन सहित उपदेशते हैं। वह केवल (मिश्रण रहित) परिपूर्ण परिशुद्ध मादर को प्रकाशित करते हैं। उस धर्मको गृहपतिका पुत्र या
और किसी छटे कुर में उत्सन्न पुरुष सुनता है। वह उस धर्म को सुनकर तथागतके विषय में श्रद्धा काम करता है । वह उस श्रद्धा. हामसे संयुक्त हो सोचता है, यह गृहवास जंजाल है, मेलका
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