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जैन मौद तल्लयान। [२२९ (३-१२) (पृ० ३५४) उपस्थित नहीं होता तो गर्भ धारण नहीं होता । माता-पिता एकत्र होते हैं। माता ऋतुमती होती है किंतु गन्धर्व उपस्थित नहीं होते तो भी गर्भ धारण नहीं होता । बक माता पिता एकत्र होते हैं, माता ऋतुती होती है और गन्धर्व उ# स्थित होता है । इस पफार तीनों के एकत्रित होनेसे गर्भ धारण होता है । तब उस ग्रु-मारवाले गर्भको बड़े संशयके साथ माता कोखमें नौ या दस मास धारण करती है। फिर उस गरु-भारवाले गर्भको बड़े संशयके साथ माता नौ या दस मासके बाद जनती है। तब उस जात (संतान ) को अपने ही दुधसे पोसती है।
तब भिक्षुमो ! वह कुमार बड़ा होनेपर, इन्द्रियों के परिपक होनेपर जो वह बच्चों खिलौने हैं। जैसे कि वंकक (का), पटिक (पहिया), मोखचिक (मुंहका बड्डू), चिंगुलक (चिंगुलिया) पात्र पाठक (तराजु), स्थक (गाड़ी, धनुक (धनुही), उनसे खेलता है। सब भिक्षुमो! वह कुमार और बड़ा होने पर, इन्द्रियोंके परिपक होनेर, संयुक्त संलिप्त हो पांच प्रकारके काम गुणों (विषयमोगों) को सेबन करता है । अर्थात् चक्षुमे विशेष इष्ट रूपोको, मोबसे इष्ट शब्दोंको, घणसे इष्ट गन्धों को, जिह से इष्ट सोको, कायासे इष्ट स्पों को सेवन करता है। वह क्षुमे प्रिय रूपोंको देखका राग्युक्त होता है, अप्रिर रूगोंको देखकर द्वेषयुक्त होता है। कायिक स्मृति (होश ) को कायम रख छोटे चितसे विहरता है। वह उस चित्तकी विमुक्त और प्रज्ञानी विमुक्तिका बीक से ज्ञान नहीं करता, जिससे कि उसकी सारी बुगांना
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