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न बौद्ध तत्वज्ञान। मार्ग है । प्रवज्या (सन्यास ) मैदान (पा खुला स्थान) है। इस नितान्त सर्वथा परिपूर्ण, सर्वथा परिशुद्ध स्वरीदे शंख जैसे उजन ब्रह्मचर्यका पालन घर में रहते हुए सुकर नहीं है। क्यों न मैं सिर, दादी मुंडकर, काषाय बस्त्र पहन घ से बेघः हो प्रवजित होज ऊं" सो वह दुसरे समय मानी अल्प भोग राशि:ो या महाभोग राशिको, भर ज्ञ तिमंडलको या महा ज्ञ तिमंडकको छोड़ सिर दादी मुड़ा, काषाय वस्त्र पहन परसे बेघर हो प्रवनित होता है।
बह इस प्रकार प्रबजित हो, भिक्षुओं की शिक्षा, समान जी व. काको प्रप्त हो, प्राणातिपात छोड़ प्राणि हिंसासे विस्त होता है। रंडत्यागी, शस्त्रत्यागी, रज लु, दयालु, सर्व प्राणियों का हितकर मौर अनुमा हो विहरता है। मदिनादान (चोरी) छोड़ दिना. दायी (दियेका लेनेवाला), दियका च हन्व ला पवित्रामा हो विकता है। अब्रह्मचर्य को छोड़ ब्रह्म गरी हो. ग्राम्यधर्म मैथुसे विग्त हो; भारचारी ( दूर रहनेवाला) होता है । मृपावादको छोड़. मृष वा. से विस्त हो, सत्यवादी, सत्यसंघ, कोकका प्राविसंमदक, विश्वा. सपात्र होता है। पिशुन वचन (चुगली) छोड़ पिशुन बचनसे विलं होता है। इन्हें फोडनेके लिये यहां सुनकर वहां कहनेवाला नहीं होता या उन्हें फोरने के लिये वहांसे सुनकर यहां कहने वाला नहीं क्षेता । वह तो फ्टों को मिटानेवाला, मिले हुमों को न फोड़नेवाला, एकतामें प्रसन्न, एकतामें रत, एकत में आनंदित हो, एकता करनेबाली वाणीका बोलनेवाला होता है, कटु वचन छोड़ कटु बचनसे विरत होता है । जो वह वाणी कर्णमुखा, प्रेमणीया, हृदयंगमा,
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