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जैन बौद्ध तत्वज्ञान। (४) फि' इम सूत्र में बताया है कि इस प्रकार के दर्शन शान) कि पांच कंपही संसार है व इनका निरोध संसारका नाश है, पकड़ कर बैठ न हो। यह सभ्यर्शन तो निर्वाण का मार्ग है, महाबके समान है, संपार पार होनेके लिये है।
भावार्थ-पत्र भी विकल् । छोकर यम पम घिको प्रान करना चाहिये जो साक्षत् निर्माणका मार्ग है। मर्ग तब ही तक है,. जहाजका आश्रय तब ही तक है जब तक पहुंचे नहीं। जैन सिदां. तमें भी सम्यग्दर्शन दो प्रकारका बताया है। व्यवहार से सवादिका श्रद्धान है, निश्चय स्वानुभव या समाधिभाव है। व्यवहार के द्वारा निश्चय पर पहुंचना चाहिये। तत्र व्यवहार स्वयं छूट जाता है। स्वानुभव ही वास्तबमें निर्वाण मार्ग है व स्वानुभव ही निर्वाण है।
(५) फिर इस सूत्र में चार तहका माहार बताया है-जी संसारका कारण है । (१) प्रासाहार या सूक्ष्म शरीर पोषक वस्तुका ग्रहण (२) स्पर्श अर्थात् पांचों इन्द्रियोंके विषयोंकी तरफ झुकना, (३) मनः संचेतन मनमें इन्द्रिय सम्बन्धी विषयों का विचार करते रहना, (४) विज्ञान-मन के द्वारा जो इन्द्रियों के संबन्धसे स्त्री रागद्वेष रूम छाप पड़ जाती है-चेतना दृढ होनाती है वही विज्ञान है। इन चारों माहारों के होने का मूल कारण तृष्णाको बताया है। वास्तवमें तृष्णाके विना न तो मोबन कई लेता है न इन्द्रियों के विषयोंको ग्रहण करता है। जैन सिद्धांतमें भी तृष्णाको ही दुःखका मूल बताया है । तृष्णा जिसने नाश कर दी है वही भवसे पार हो जाता है।
(६) इसी सुत्रमें इस तृष्णाके भी मूल कारण अविद्याको या
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