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सभ्य, बहुजन कांता-बहुजन मन्या है, वैसी वाणीका बोलनेवाला होता है। पलापको छोड़ प्रकापसे विस्त होता है । समय देखकर बोलनेवाला, यथार्थवादी अथवादी, धर्मवादी विनयवादी हो तात्पर्य युक्त, फल्युक्त, सार्थक, सायुक्त वाणी का बोलनेवाला होता है।
यह बीन समुदाय. भूत समुदायके विनाशमे वित होता है। एकाहारी, रातको उपरत ( सतको न खानेवाला ), विकास ( मध्य बोत्तर ) मोननसे विरत होता है । माला, गंध, विलेपनके धारण मंडन विभूषणमे वित होता है। उच्चशयन और महाशयनसे विस्त होता है । सोना चांदी लेने से विस्त होता है। कच्चा अनाज मादि लेनेमे वित होता है । स्त्री कुम री, ढासीदास, भेड़बकरी, मुर्गी सूबर, हाथी गाय, घोडा घडी. खेत घर रेनेसे विरत होता है । दुत बनकर जाने से विस्त होता है । क्रय विक्रय करनेसे विरत होता है। ताजकी ठगी, कांसे की ठगी, मान (तौल ) की ठगीसे विस्त होता है । धूप, वचना, जाकम जी कुटलयोग, छेदन, वध, बंधन छापा मान्ने, प्रामादिके विनाश करने, जाल डालनेसे विस्त होता है।
यह भरीरके वस्त्र व पेटके स्वाने से संतुष्ट हत है। वह जहा जहां जाता है अपना सामान लिये ही जाता है जैसे कि (क्षी जहाँ कहीं उड़ता है अपने पक्ष मार के साथ ही उड़ा है। इसी प्रकार भिक्षु शरीके स्त्र और पेट के खाने से संतुष्ट होता है, वह इस प्रकार भार्य (नि ) शीलाध ( सदाचार समूह) से मुक हो, अपने भीतर निर्मक मुखको अनुभव करता है ।
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