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जैन बौद तत्वज्ञान। २२७ निरोध होता है, विज्ञान के निरोधसे नापरूका निरोध होता है, नामरूपके निरोधसे पड़ायतना निरोध होता है, पड़ायतनके निरोसे स्पशंका निरोष होता है, स्पर्श के निरोक्से वेदनाका निगे होता है, वेदनाके निरोबसे तृष्णाका निरोध होता है, तृष्णाके नितो. पसे उपादानका निरोव होता है । उआदानके निशेधसे भाका निरोप होता है, मवके निरोधमे जाति (जाम) का निरोष होता है, जाति के निरोषसे जरा, मरण, शोक, कंदन, दुःख, दौमनस्या निरोध होता है। इस प्रकार केवळ दुःख स्कंधा निरोष होता है। - भिक्षुओ! इसप्रकार (पूर्वोक्त करसे) जानते देखते हुए क्या तुम पूर्वके छोर (पुगने समय या पुगने जन्म) की ओर दौड़ोगे। 'महो ! क्या हम अतीत कालमें थे ? या हम अतीत कालमें नहीं थे ? मतीत कारमें हम क्या थे ? अतीत काल में हम कैसे थे? भतीत कालमें क्या होकर हम क्या हुए थे ?" नहीं।
८-भिक्षुओ ! इस प्रकार जानते देखते हुए क्या तुम वादक ओर (आगे आनेवाले समय) की ओर दौड़ोगे। 'अहो ! क्या हम भविष्यकालमें होंगे ! क्या हम भविष्यकाल में नहीं होंगे ? भविष्यकालमें हम क्या होंगे ? भविष्यकाल में हम कैसे होंगे ? भविष्यकालमें क्या होकर हम क्या होंगे ? नहीं
भिक्षुओ! इस प्रकार जानते देखते हुए क्या तुम इस वर्तमानकालमें अपने भीतर इस प्रकार कहने सुननेवाले (कथं कथी) होंगे। अहो ! 'क्या मैं हूं ?' क्या मैं नहीं हूं ? मैं क्या ई! * कैसा है ? यह सत्व (प्राणी) कहांसे भाया ? वह कहां जानेवाला
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