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दूसरा मांग।
बहुश्रुत होंगे, (४१) उद्योगी होंगे, (४२ ) उपस्थित स्मृति होंगे, (४३) प्रज्ञा सम्पन्न होंगे, (४४) सादृष्टि परामर्शी ( ऐहिक लाभ सोचने वाले), माघानग्रही ( हठी), दुष्प्रतिनिसर्गी (कठिनाईसे त्याग करनेवाले) न होंगे ।
अच्छे धर्मोके विषयमें विचारके उत्पन्न होने को भी मैं हितकर कहता हूं । काया और वचनसे उनके अनुष्ठान के बारेमें तो कहना ही क्या है, ऊपर कहे हुए (४४) विचारोंको उत्पन्न करना चाहिये ।
जैसे कोई विषम (कठिन) मार्ग है और उसके परिक्रमण (त्याग) के लिये दूसरा सममार्ग हो या विषम तीर्थ या घाट हो व उसके परिक्रमणके लिये समतीर्थ हो वैसे ही हिंसक पुरुष पुद्गल (व्यक्ति) को अहिंसा ग्रहण करने योग्य है, इसी तरह ऊपर लिखित ४४ बातें उनके विरोधी बातोंको त्यागकर ग्रहण योग्य हैं। जैसे कोई भी अकुशल धर्म (बुरे काम) हैं वे सभी अघोभाव (अधोगति) को पहुंचानेवाले हैं। जो कोई भी कुशल धर्म (अच्छे काम) हैं वे सभी उपरिभाव (उन्नतिकी तरफ) को पहुंचानेवाले हैं वैसे ही हिंसक पुरुष - पुद्गल को हिंसा ऊपर पहुंचानेवाली होती है । इसीतरह इन ४४ बातोंको जानना चाहिये ।
जो स्वयं गिरा हुआ है वह दूसरे गिरे हुएको उठाएगा यह संभव नहीं है किंतु जो आप गिरा हुआ नहीं है वही दूसरे गिरे हुएको उठाएगा यह संभव है । जो स्वयं अदान्त (मन के संयम से रहित) है; अविनीत, अपरि निर्वृत ( निर्वाणको न प्राप्त ) है वह दुसरेको दान्त, विनीत व परिनिर्वृत्त करेगा यह संभव नहीं । किंतु
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