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दूसरा भाग ।
यह नन्दी (राग) का नाम है। इस मांशपेशीको फेंक दे। नन्दी रागको प्रज्ञासे काट दे । (१५) भिक्षु ! नाग यह क्षीणास्रव ( भईत) भिक्षुका नाम है । रहनेदे नागको मत उसे धक्का दे, नागको नमस्कार कर, यह इसका अर्थ है ।
नोट - इस सूत्र में मोक्षमार्गका गूढ़ तत्वज्ञान बताया है। जैसे सापकी वल्मीक में सर्प रहता हो वैसे इस कायरूपी वल्मीक में निर्माण स्वरूप मत् क्षीणास्रव शुद्धात्मा रहता है। इस वल्मीकरूपी काय में क्रोधादि कषायका धूआं निकला करता है। इन कषायको प्रज्ञासे दूर करना चाहिये । इस कायमें अविद्यारूपी लंगी है। इसको भी प्रज्ञासे दूर करे । इस कायमें संशय या द्विकोटि ज्ञान रूपी दुविघा दो रास्ते हैं उसको भी प्रज्ञासे छेद डाल । इस कायमें पांच नीवरणोंका टोकरा है। इस टोकरे को भी प्रज्ञा से तोड़ डाळ । अर्थात राग, द्वेष, मोह, आलस्य उद्धता और संशयको मिटा डाल | इस कायमें रहते हु पांच उपादान स्कंधरूपी कृमि या कछुआ है इसको प्रज्ञा द्वारा फेंक दे । अर्थात् रूप व रूपसे उत्पन्न वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञानको जो अपने नागरूपी अरइत्का स्वभाव नहीं है उनको भी छोड़ दे। इस कायमें पांच काय गुणरूपी असिसना ( पशु मारने का पीढ़ा ) है इसे भी फेंक दे । पांच इन्द्रियोंके मनोज्ञ विषयोंकी चादको भी प्रज्ञासे मिटा डाल । इस कायमें तृष्णा नदीरूपी मांसकी डली है इसको भी प्रज्ञाके द्वारा दूर करदे । तब इस कायरूपी वल्मीक से निकल कर यह अर्हत् क्षीणास्रव निर्वाण स्वरूप आत्मारूपी निर्वाणरूप रहेगा ।
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