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जौन वैद्ध तत्वज्ञान । [१८३ अप्पा अप्पउ जइ मुणहि त उ णियाणु लहेहि। पर अप्पा जउ मुणिहि तुहुं तहु संसार भमेहि ॥ १२ ॥
भावार्थ-यदि तू अपनेसे आपको ही अनुभव करेगा तो निर्वाण पावेगा और जो परको आप मानेगा तोतृसंसारमें ही भ्रमेगा।
जो परमप्पा सो जि हउ जो हउ सो परपप्पु । इउ जाणे विणु जेइआ अण्ण म कर हु वियप्पु ॥ २२ ॥
भावार्थ-जो परमात्मा है वही मैं हूं, जो मैं हूं. सो ही परमात्मा है ऐसा समझकर हे योगी ! और कुछ विचार न कर ।
सुद्ध सचेयण बुद्ध जिणु केवळणाणसहाउ । सो बप्पा अणुदिण मुणहु जइ चाउ सिवलाहु ॥ २६॥
भावार्थ-नो तु निर्वाणका लाभ चाहता है तो तू रात दिन उसी भात्माका अनुभव कर जो शुद्ध है, चैतन्यरूप है, ज्ञानी व वृद्ध है, रागादि विनयी निन है तथा केवलज्ञान स्वभाव धारी हैं।
अप्पसरूवह जो रमइ छंटवि सहुववहारु ।
सो सम्माइटो हवइ लहु पाघइ भवपारु ॥ ८८ ॥
भावार्थ-जो कोई सर्व लोक व्यवहारसे ममता छोडकर अपने मात्माके स्वरूपमें रमण करता है वही सम्यग्दृष्टी है, वह शीघ्र संसारसे पार होजाता है।
सारसमुच्चयम कहा हैशत्रुभावस्थितान् यस्तु करोति वशवर्तिनः । प्रज्ञाप्रयोगसामर्थ्यात् स शुरः स च पंडितः ॥ २९ ॥ भावार्थ-जो कोई राग द्वेष मोहादि भावोंको जो भात्माके
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