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दूसरा भाग। कहे कि हे पुरुष ! मापने सारको नहीं समझा । सारसे जो काम करना है वह इस शाखा पत्तेसे न होना । ऐसे ही भिक्षुओ! यह वह है निस भिक्षुने ब्रह्मचर्य (बाहरी शील) के शाखा पचेको ग्रहण किया और उतनेहीसे अपने कृत्य को समाप्त कर दिया।
१२) कोई कुल पुत्र श्रद्धासे प्रवजित हो लाम, सत्कार, श्योकका भागी होता है। वह इससे संतुष्ट नहीं होता व उस लाभादिसे न घमण्ड करता है न दुमरोको नीव देखता है, वह मतवाला व प्रमादी नहीं होता, प्रमाद रहित हो, शील (सदाचार ) का माराधन करता है, उसीसे सन्तुष्ट हो, अपने को पूर्ण संकरप समझता है। वह उस शील सम्पदासे अभिमान करता है, दूसरोंको नीच समझता है। यह भी प्रमादी हो दुःखित होता है ।
जैसे भिक्षुओ! कोई सारका खोत्री पुरुष छाल और पपड़ीको काटकर व उमे सार समझार लेका चला जावे, उसको आंखवाला देखकर कहे कि आप सारको नहीं समझे। सारसे जो काम करना है वह इस छाल और पपड़ीसे न होगा। तब वह दुःखित होता है। ऐसे ही यह शोक संपदाका अभिमानी मिशु दुःखित होता है। क्योंकि इसमें यहीं अपने कृत्यकी समाप्ति करती।
(३) कोई कुल पुत्र श्रद्धानसे प्रत्रजित हो लाभादिसे सन्तुष्ट न हो, शीक सम्पदासे मतवाला न हो समाधि संपदाको पाकर उससे संतुष्ट होता है, अग्नेको परिपूर्ण संकरा समझता है। वह उस समाधि संपदासे अभिमान करता है, दूसरोंको नीच समझता है, वह इस तरह मतवाला होता है।
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