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दुसरा भाग। (८) भिक्षु वीथीको नहीं जानता- भिक्षु आर्य अष्टांगिक मार्ग ( सम्यग्दर्शन, सम कूसम वि) को ठीक ठीक नहीं जानता।
(९) भिक्षु गोचर कुशल नहीं होता-भिक्षु चार स्मृति प्रस्थानोंको ठीक टोक नहीं जानता ( देखो अध्याय- ८ कायस्मृति, वेदनास्मृति, चित्तस्मृति धर्मस्मृति)।
(१०) भिक्षु विना छोड़े अशेषका दुहनेवाला होता हैभिक्षुओंको श्रद्धालु गृहपति मिक्षान्न, निवास, आसन, पथ्य औषघिकी सामग्रियोंसे मच्छी तरह सन्तुष्ट करते हैं, वहां भिक्षु मात्रासे (मर्यादारूप) ग्रहण करना नहीं जानता।
(११) भिक्षु चिरकालसे प्रबजित संघके नायक जो स्थविर भिक्षु हैं उन्हें अतिरिक्त पूनासे पूजित नहीं करतीभिक्षु स्थपिर क्षुिओंके लिये गुप्त और प्रगट मंत्री युक्त का यक कर्म, वाचिक कर्म मौर मानस कर्म नहीं करता।
इस तरह इन ग्यारह धर्मोसे युक्त क्षुि इस धर्म विनयमें वृद्धिविकदिको प्राप्त करनेमें अयोग्य है।
क्षुिओ, ऊपर लिखित ग्यारह बातोसे विरोधरूप ग्यारह धोसे युक्त गोपालक गोयुथकी रक्षा करनेके योग्य होता है। इसी प्रकार उपर कथित ग्यारह घमासे विरुद्ध ग्यारह धर्मोसे युक्त क्षुि वृद्धिविकदि, दिपुरता प्राप्त करनेके योग्य है । अर्थात् क्षुि-(१) रूपका यथार्थ जाननेवाला होता है, (२) बाल और पण्डितके कर्म रक्षणोंको जानता है, (३) काम, व्यापाद, हिंसा, लोभ, दौमनस्य भादि अनुकल धर्मोका स्वागत नहीं करता है, (४) पांचों इन्द्रिय व
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