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जैन बौद्ध तत्वज्ञान । ।२१५ हे मनसे जानकर निमित्याही नहीं होता म्यवान ३ है, (१) जाने हुए धारको के लिये निता गदेश करता है, (६) बहुत श्रुन पास समय समय पर प्रश्न पृष्ठता है, :७) तथागत मा अमेय हे अविना. ज्ञानको पाला है, (:) .. अष्टांगिक मानको की २ जानता है, (१) चारों मृति पीक है. (१०) मोज. नादि ग्रहण करने में मार को जार है, (११) स्थविर मिरों के लिये गुप्त और प्रकट मंत्री शायिक. वाचक, म स कर्म करता है।
नोट-इभ सूत्रमें मूर्ख और चतुर लेका दृष्टान्त देकर अज्ञाकी साधु और जन माको शक्ति का उपयोगी वर्णन किया है। वास्तवमें जो माधु इन मुमोमे यक वाता है । निर्वाणमोगको लरफ ददता हुआ उन्नति कर सत्ता है, उसे (१) सर्व पोलिक रचनाका ज्ञाता हो मोह त्यागना चाहिये । (२) पंडितके लक्षणों को जानकर स्वयं पंडित रहना चाहिये । (३) बोधादि कवायों का त्यागी होना च डिय । (४) पांच इन्द्रिय व मनका संकभी होना चाहिये । (५) परोपकादि धर्म का उपदेश होना चाहिये। (६) विनय सहि बहुझातार शंका निवारण करते रहना चाहिये । (5) धो दशके सारको समाना चाहिये । (८) मोक्षमार्गक माला डोना वाहिये । १२) धर्मक्षक भावनाओं को मारना चाहिय। (१०) संतोषपूर्वक भस्पाहारी होना चाहिये । (११) बड़ोंकी मे मैत्रीयुक्त भावसे मन वचन कायसे करनी चाहिये । जैन सिद्धान्तानुसार भी ये सब गुण साधुमें होने चाहिये ।
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