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११२ होता है । इसीको जैन सिद्धांतमें केवलज्ञान कहा है। क्षीणासव साधु सयोगवे वली जिन होजाता है वह सर्वज्ञ वीतगग कृतकृत्य भईत होजाता है वही शरीरके मंतमें सिद्ध परमात्मा निर्वाणरूप होजाता है।
कहा है कि निर्वाणकी प्राप्तिके लिये अमृत द्वार खोल दिया जिसका मतलब यही है कि अमृतमई आनन्दको देनेवाला स्वानुभव रूप मार्ग खोल दिया यही निर्वाणका साधन है वहां निर्वाणमें भी परमानंद है। वह अमृत अमर रहता हैं। यह सब कथन जैनसिद्धांतमें मिलता है । जैनसिद्धांतके कुछ वाक्य
पुरुषार्थसिद्धयुपायमें कहा है:मुख्योपचार विधानिस्तदुस्ता विनेयदुर्योधाः । व्यवहार निक्षयज्ञाः प्रार्तयन्ते जगति तीर्थम् ॥ ४ ॥
भावार्थ-जो उपदेश दाता व्यवहार और निश्चय मार्गको जाननेवाले हैं वे कभी निश्चयको, कभी व्यवहारको मुख्य कह र शिष्योंका कठिन से कटिन अज्ञानको मेट देते हैं वे ही जगतमें धर्मतीर्थका प्रचार करते हैं । स्वानुभव निश्चय मोक्षमार्ग है, उसकी प्राप्ति के लिये बाहरी व्रताचरण आदि व्यवहार मोक्षमार्ग है। व्यवहारके सहारे स्वानुभवका लाभ होता है। जो एक पक्ष पकड़ लेते हैं, उनको गुरु समझा कर ठीक मार्गपर लाते हैं ।
आत्मानुशासनमें कहा है:प्राज्ञः प्राप्त समस्तशास्त्रहृदयः प्रव्यक्तलोकस्थितिः प्रास्ताशः प्रतिमापरः प्रशमवान् प्रागेव दृष्टोत्तरः ।
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