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दूसरा भाग ।
पैदा एक बछड़ा भी माताकी गर्दनके सहारे तैरते गंगाकी धारको तिरछे काटकर स्वस्त्रिपूर्वक पार चला गया। सो क्यों ? इसी लिये कि बुद्धिमान ग्व लेने हांकी । ऐसे ही भिक्षुओं ! जो कोई श्रमण या ब्राह्मण इस लोक परलोक के जानकार, मारके लक्ष्य अलक्ष्पके जानकार व मृत्युके लक्ष्य अलक्ष्य के जानकार हैं उनके उपदेशको जो सुनने योग्य श्रद्धा करने योग्य समझेंगे उनके लिये यह चिरकालतक हितकर-सुखकर होगा ।
(१) जैसे गाय के नायक वृषभ स्वस्तिपूर्वक पार चले गए. ऐसे ही जो ये अर्हत् क्षीण सत्र, ब्रह्मचर्यवास समात, कृतकृत्य, मारमुक, सप्त पदार्थको प्रप्स, भव बंधन रहित, सम्यग्ज्ञ नद्वारा युक्त हैं वे मारकी धाराको तिरछे काटकर स्वस्तिपूर्वक पार जांयेंगे ।
(२) जैसे शिक्षित बळवान गाएं पार होगईं, ऐसे ही जो भिक्षु पांच व्यवरभागीय संयोजनों (सल्कीय दृष्टि ) ( भात्मवादकी मिथ्या दृष्टि ), विचिकित्सा ( संशय ), शीतत्रत परामर्श (व्रताचरणका अनुचित अभिमान), कामच्छेन्द्र (भोगों में राग), व्यामोह ( पीड़ाकारी वृत्त) के क्षयमे औरपातिक (अयोनिज देव) हो उस देवसे लौटकर न था वहीं निर्माणको प्रप्त करनेवाले हैं वे भी चार होजांयेंगे ।
(३) जैसे बछडे बछडियां पार होगई वैसे जो भिक्षु तीन संयोजनोंके नाशसे- राग द्वष, मोहके निर्बल होने से सकृदाग भी हैं, एक बार ही इस लोक में आकर दुःखका अंत करेंगे वे भी निर्वानको प्राप्त करनेवाले हैं।
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