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जौन बैद्ध तत्वज्ञान |
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भावार्थ- वीतरागी साधुक मीटर ऐसा कोई अपूर्व परमानंद
मन्त्यि ऐश्वर्य भी
पैदा होता है, जिसके सामने
तृणके समान है ।
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(२४) मज्झिमनिकाय चूलगोपालक सूत्र |
गौतम
बुद्ध कहते हैं - भिक्षुओ ! पूर्वकाल में मगच निवासी एक मूर्ख गोलकने व अंतिम मास में कामें गंगानदीके इस पारको विना सोचे, उस पारको बिना सोचे वे घाट ही विनेहकी ओर दुपरे ती' को गायें हांक दीं, वे गाएं गंगानदीके स्रोतके -
में पड़ कर वहीं विनाशको प्राप्त हो गई । सो इसी लिये कि वह गोपालक मुर्ख था । इसी प्रकार जो कोई श्रमण या ब्राह्मण इस लोक व परलोक अनभिज्ञ हैं, मारके लक्ष्य चलक्ष्यसे मरमिल हैं, मृत्यु के लक्ष्य अलक्ष्यसे अनभिज्ञ हैं, उनके उपदेशों को जो सुनने योग्य, श्रद्धा करनेयोग्य समझेंगे उनके लिये यह चिरकाल कर अहितकर- दुःखकर होगा |
भिक्षुओ ! पूर्वकालमें एक मगधवासी बुद्धिमान ग्वालेने वर्षाकेअंतिम माह में शरदकालमें गंगानदीके इस पार व उस पारको सोचकर व टसे उत्तर तीरपर विदेहकी ओर गाएं हांकीं । उसने जो वे गायोंके पितर, गायक नायक कृष थे, उन्हें पहले हांका | वे गंगाकी घारको तिरछे काटकर स्वस्त्रिपूर्वक दूसरे पार चले गए। तब उसने दूसरी शिक्षित बलवान गार्योको छांचा, फिर बछड़े और वछियों को हांका, फिर दुर्बल बछड़ोंको हांका, वे सब स्वस्ति पूर्वक दूसरे पार चले गए। उस समय तरुण कुछ ही दिनोंका
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