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जैन बौद्ध तत्वज्ञान। [२०१ प्रमादी हो दुःखित होता है । असे कोई सार चाहनेवाला मारको छोड़ फल्गु नो छालको काटकर, सार समझकर लेकर चम नावे उसको मांखवाला पुरुष देखकर कहे माप सारको नहीं समझे काम न निकलेगा, तब वह दुःखित होता है। इसी तरह वह कुलपुत्र दुःखित होता है।
(४) कोई कुलपुत्र श्रद्धासे प्रव्रजित हो लाभादिसे, शीलसम्पदासे व समाधि सम्पदासे मतवाला नहीं होता है। प्रमादरहित हो ज्ञानदर्शन ( तत्व साक्षात्कार ) का भाराधन करता है । वह उस ज्ञानदर्शन में संतुष्ट होता है। परिपूर्ण संकल्प अपनेको समझता है। बह इस ज्ञानदर्शनसे अभिमान करता है, दूसरोंको नीच समझता है, वह मतवाला होता है, दुःखी होता है।
से भिक्षुओ! सार खोजी पुरुष सारको छोड़कर फल्गुको काटकर सार समझ लेकर चला जावे। उसको भांखवाला पुरुष देख. कर कहे कि यह सार नहीं है तब वह दुःखित होता है। इसी सरह यह भिक्षु भी दुःखित होता है।
(५) कोई कुलपुत्र कामादिसे, शील सम्पदासे, समाधि संपदासे मतवाला न होकर ज्ञान दर्शनसे संतुष्ट होता है। परन्तु पूर्ण संकल्प नहीं होता है। वह प्रमाद रहित हो शीघ्र मोक्षको मारावित करता है । तब यह संभव नहीं कि वह भिक्षु उस सबः पाप्त (कालिक ) मोक्षसे च्युत होवे । जैसे सारखोजी पुरुष सारको ही काटकर यही सार है, ऐसा समझ ले जावे, उसे कोई भांखवाग पुरुष देख कर कहे कि अहो! मापने सारको समझा है, आपका
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