________________
समधिगतसमस्ताः सर्वसावधदूग: खहितनिहितचित्ताः शान्तसर्वप्रचाराः । खपरसफळजरूपाः सर्वसंकल्पमुक्ता: कथमिह न विमुक्तेर्माननं ते विमुक्त': ॥ २२६ ॥
भावाथ-जिन्होंने सर्व शास्त्रोंका रहस्य जाना है, जो सर्व 'पापोंसे दूर है, जिन्होंने भात्म कश्याणमें अपना मन लगाया है, जिन्होंने सर्व इन्द्रियोंकी इच्छाओंको शमन कर दिया है, जिनकी वाणी स्वपर कल्याणकारिणी है, जो सर्ब संकल्पोंसे रहित हैं, ऐसे विरक्त साधु निर्वाणके पात्र क्यों न होंगे ? अवश्य होंगे। - ज्ञानार्णवम कहा है
पाशा: सद्यो विपद्यन्ते यान्त्य विद्याः क्षयं क्षणात् । . (म्रपते चित्तभोगीन्द्रो यस्य सा साम्यभावना ॥ ११-२४ ॥
भावार्थ-जिसके समभावकी शुद्ध भावना है, उसकी भाशाएं शीघ्र नाश होजाती हैं, अविद्या क्षणभरमें चली जाती है, मनरूपी नाग भी मर जाता है।
(२२) मज्झिमनिकाय महागोसिंग सूत्र ।
एकसमय गौतम बुद्ध गोसिंग सालवनमें बहुतसे प्रसिद्ध २ शिष्यों के साथ विहार करते थे। जैसे सारिपुत्र, महामौद्गलायन महाकाश्यप, अनुरुद्ध, रेवत, आनन्द आदि ।
महामौद्गलायनकी प्रेरणासे सायंकालको ध्यानसे उठकर प्रसिद्ध भिक्षु सारिपुत्रके पास धर्मचर्चा के लिये आए।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com