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जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [२०९ पूर्वाह समय, जिसे मध्य ह समय, जिसे संध्या समय धारण करना चाहे उसे धारण करें। इस प्रहार भिक्षुपे यह वन शोभता है।
तब सारिपुत्र ने कहा-हम सब भगवान के पास जाकर ये बातें कई । जैसे वे हमें बतलाएं वैमे दम धारण करें। तब वे भगवान बुद्ध पार गए और सब का कथन सुनाया। तब सारिपुत्रने भगवानसे कहा- किसका कथन सुभ पिर है।
(७, गौतम बुद्ध कहते हैं-तुम सभी का भापित एक एक करके सुभाषित है और मेरी भी सुनो। जो भिक्षु भोजन के बाद भिक्षासे निवटकर, आसन कर शरीको सीधा रख, स्मृति को सामने उपस्थित कर संकल्प करता है। मैं तबक इस मापन को नहीं छोडूंगा जबतक कि मेरे वित्तमल दित्त को न छोड़ देंगे। ऐसे भिक्षुये गोसिंग वन शोभित होगा।
नोट - यह सूत्र साधुरो शिक्षाम् बहुत उपयोगी है। साधुको एकांतमें ही ध्यानका अभ्यास करना चाहिये । परम सन्तोषी होना चाहिये । संसर्ग रहित व इच्छा रहित होना चाहिये, ये सब बातें जैन सिद्धान्तानुसार एक साधु के लिये माननीय हैं। जो निग्रन्थ सर्व परिग्रह त्यागी साधु जैनोंमें होने हैं वे वस्त्र भी नहीं रखते हैं. एक मुक्त होते हैं। जैसे यह निर्गन स्थानमें तीन काल ध्यान करना कहा है वैसे ही जैन साधु ३) भी वह मध्य ह व सन्ध्याको ध्यानका अभ्यास काना चाहिये । ध्यान के भने गद हैं। जिस ध्यानसे जब चित्त एकाग्र हो इस प्रकार ३. ध्यानका तप ध्याचे । अपने मामाके ज्ञानदर्शन स्वभाव का साक्षात्कार करे : साधुको बहुत
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