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जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [१११ अतुलसुखनिधानं ज्ञानविज्ञानबीजे
विलयगतकलंक शांतविश्वपचारम् । गलितसकळशंकं विश्वरूपं विशालं
___ भन विगतविकारं स्वात्मनात्मानमेव ॥४३-१५॥ भावार्थ-हे आनन्द ! तू अपने ही आत्माके द्वारा अनंत सुख समुद्र, केवल ज्ञानका बीज, कलंक रहित, सर्व संकल्पविकल्प गहित, सर्वशंका रहित, ज्ञानापेक्षा सर्वव्यापी, महान, तथा निर्विकार मात्माको ही भज, उसीका ही ध्यान कर ।
ज्ञानभूषण भट्टारक तत्वज्ञानतरंगिणीमें कहते हैंसंगत्यागो निर्जनस्थानकं च तत्त्वज्ञानं सर्वचिंताविमुक्तिः । निधित्वं योगरोधो मुनीनां मुक्तये ध्याने हेतवोऽमी निरुक्ताः ॥८-१६॥
भावार्थ-परिग्रहका त्याग, निर्जनस्थान, तत्वज्ञान, सर्व चिंताओंका निरोध, बाधारहितपना. मन वचन काय योगोंकी गुप्ति, वे ही मोक्षके हेतु ध्यानके साधन कहे गए हैं। ।
श्री देवसेनाचार्य तत्वसारमें कहते हैंपरदव्वं देहाई कुणइ ममत्तिं च जाम तस्सुवरि । परसमयग्दो ताव बज्झदि कम्मे हि विविहे हि ॥ ३४ ॥
भावार्थ:-पर द्रव्य शरीरादि है। जब तक उनके ऊपर ममता करता है तबतक पर पदार्थमें रत है व तबतक नाना प्रकार कर्माको बांधता है।
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