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दूसरा भाग। कर दिया । यह मिक्षु मारकी चक्षुसे अगम्य वनकर पापीसे मदर्शन होगया । लोकसे विसत्तिक ( मनासक्त) हो उत्तीर्ण होगया है।
नोट-इस सूत्रमें सम्यक्समाधिरूप निर्वाण मार्गका बहुत ही बढ़िया कथन किया है। तीन प्रकार के व्यक्ति मोक्षमार्गी नहीं हैं। (१) वे जो विषयोंमें लम्पटी हैं, (२) वे जो विषयभोग छोड़कर भाते परन्तु वासना नहीं छोड़ते, वे फिर लौटकर विषयोंमें फंस जाते। (३) वे जो विषयभोगोंमें तो मूर्छित नहीं होते, मात्रारूप अप्रमादी हो भोजन करते परन्तु नाना प्रकार विकल्प जालोंमें संदेहोंमें फंसे रहते हैं, वे भी समाधिको नहीं पाते । चौथे प्रकारके भिक्षु ही सर्व तरह संसारसे बचकर मुक्तिको पाते हैं, जो काम भोगोंसे विरक्त होकर रागद्वेष व विकला छोड़कर निश्चिन्त हो, ध्यानका अभ्यास करते हैं। ध्यानके अभ्यासको बढ़ाते बढ़ाते बिलकुल समावि भावको प्राप्त होनाते हैं तब उनके मास्रव क्षय होजाते हैं. वे संसारसे उत्तीर्ण होजाते हैं । वास्तवमें पांच इन्द्रियरूपी खेतोंको भनासक्त हो भोगना और तृष्णासे बचे रहना ही निर्वाण प्राप्तिका उपाय है । गृहीपदमें भी ज्ञान वैराग्ययुक्त भावश्यक अर्थ व काम पुरुषार्थ साधते हुए ध्यानका अभ्यास करना चाहिये । साधु होकर पूर्ण इन्द्रिय विजयी हो, संयम साधनके हेतु सरस नीरस भोजन पाकर ध्यानका अभ्यास बढाना चाहिये । ध्यान समाधिसे विभूषित वीतरागी साधु ही संसारसे पार होता है। ____ मब जैन सिद्धांतके कुछ वाक्य काम भोगोंके सम्बन्धमें कहते हैं
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