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(२०) मज्झिमनिकाय-विवाय सूत्र।
गौतमबुद्ध कहते हैं-नैवायिक (बड़ेलिया शिकारी) यह सोच कर निवाय (मृगोंके शिकार के लिये जंगलमे बोए खेत) नहीं बोता कि इस मेरे बोए निवायको खाकर मृग दीर्घायु हो चिरकाल तक गुजारा करें । वह इसलिये बोता है कि मृग इस मेरे बोए निवायको मूर्छित हो भोजन करेंगे, मदको प्राप्त होंगे, प्रमादी होंगे, स्वेच्छाचारी होंगे (और मैं इनको पकड़ लूंगा) ।
भिक्षुओ ! पहले मृगों (के दल) ने इस निवायको मर्छित हो भोजन किया । प्रमादी हुए (पकडे गए) नैवायिकके चमत्कारसे मुक्त नहीं हुए।
दूसरे मृगों (के दल) ने पहले मृगोंकी दशाको विचार इस निवाय भोजनसे विस्त हो. भयभीत हो अरण्य स्थानों में विहार किया। ग्रीष्मके अंतिम मासमें घास पानीके क्षय होनेसे उनका शरीर भत्यंत दुर्बल होगया, बल वीर्य नष्ट होगया तब नैवायिकके बोए निवायको खाने के लिये लौटे, मूर्छित हो भोजन किया (पकडे गए)।
तीसरे मृगों ( के दल ) ने दोनों मृगोंके दलोंकी दशाको देख यह सोचा कि 2.५ इस निकायको अमूर्छित हो भोजन करें। उन्होंने अमूर्छित हो भोजन किया। प्रमादी नहीं हुये। तब नैवायिकने उन भूगोंक गमन आगमनके मार्गको चारों तरफसे डंडोंसे घेर दिया । ये भी पकड़ लिये गये ।
चौथे मृगों ( के दल) ने तीनों मृगोंकी दशाको विचार यह सोचा कि हम वहां आश्रय लें जहां नैदायिककी गति नहीं है, वहां
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