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जैन बौद्ध ज्ञान |
[ २८५ वीर्यारम्भकी कथा कहनेवाला हो, स्वयं शीकसम्पन्न ( सदाचारी ) हो, और शील सम्पदाकी कथा कहनेवाला हो, स्वयं समाधि संपन्न - दो और समाधि सम्पदाकी कथा कहनेवाला हो, स्वयं प्रज्ञा सम्पन्न हो और प्रज्ञा सम्पदाकी कथा कहनेवाला हो, स्वयं विभुक्ति सम्पन्न हो और विमुक्ति संपदा कथा कहनेवाला हो, स्वयं विमुक्ति ज्ञानदर्शन सम्पन्न ( मुक्तिके ज्ञानका साक्षात्कार जिसने कर लिया ) हो और विमुक्ति ज्ञान दशन सम्पदाकी कथा कहता हो, जो सब्रह्मचारियों ( सह धर्मियों ) के लिये अपवादक ( उपदेशक ), विज्ञापक, संदर्शक, समादयक, समुत्तेजक, सम्प्रहर्षक ( उत्साह देनेवाला) हो ।
तब उन भिक्षुओंने कहा कि जाति भूमिमें ऐसा पूर्ण मैत्रायणी पुत्र है तब पास बैठे हुए भिक्षु सारिपुत्रको ऐसा हुआक्या कभी पूर्ण मैत्रायणी पुत्रके साथ समामम होगा ?
जब गौतमबुद्ध राजग्रहीसे चलकर श्रावस्ती में पहुंचे तब पूर्ण मैत्रायणी पुत्र भी श्रावस्ती आए और परसर धार्मिक कथा हुई । जब पूर्ण मैत्रायणी पुत्र वहीं बचपन में एक वृक्षके नीचे दिनमें विहार ( ध्यान स्वाध्याय) के लिये बैठे थे तत्र सारि पुत्र भी उसी वनमें एक वृक्ष के नीचे बैठे | सायंकालको सारिपुत्र ( प्रतिसंलपन) ( ध्यान ) से उठ पूर्ण मैत्रायणी पुत्रके पास गए और प्रश्न किया । आप बुद्ध भगवानू के पास ब्रह्मचर्यवास किस लिये करते हैं ! क्या शील विशुद्धिके लिये ? नहीं! क्या चित विशुद्धिके लिये ? नहीं ! क्या दृष्टि विशुद्धि ( सिद्धांत ठीक करने ) के लिये ? नहीं ! क्या संदेह दूर करनेके लिये ? नहीं ! क्या मार्ग थमार्गके ज्ञानके दर्शनकी विशुद्धिके
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