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१८६] दूसरा भाग। लिये ? नहीं । क्या प्रतिपद (मार्ग) ज्ञानदर्शनकी विशुद्धिके लिये ? नहीं ! क्या ज्ञानदर्शनकी विशुद्धि के लिये ? नहीं ! तब भाप किस लिये भगवान्के पास ब्रह्मचर्यवास करते हैं ? उपादान रहित (परिग्रह रहित) परिनिर्वाणके लिये मैं भगवान के पास ब्रह्मचर्यवास करता हूं।
सारिपुत्र कहते हैं-तो क्या इन ऊपर लिखित पत्रोंसे अलग उवादान रहित परिनिर्वाण है ? नहीं। यदि इन धर्मोसे अलग उपादान रहित निर्वाण का मधिकारी भी निर्वाणको प्राप्त होगा, तुम्हें एक उपमा देता । उपमासे भी कोई२ विज्ञ पुरुष कहे का अर्थ समझते हैं।
जैसे राजा प्रसेनजित कोसलको श्रावस्ती वसते हुए कोई भति आवश्यक काम साकेत (अयोध्या)में उत्पन्न होजावे। वहां जाने के लिये श्रावस्ती और साकेतके बीचमें सात स्थ विनीत (डाक) स्थापित करे। तब राजाप्रसेनमित श्रावस्तीसे निकलकर अंतःपुरके द्वारपर पहले स्थ विनीत (स्थकी डाक) पर चढ़े, फिर दूसरेपर चढे पहलेको छोडदे, फिर तीसरेपर चढ़े दुसरेको छोड़दे। इसतरह चलते चलते सातवें स्थविनीतसे साकेतके अंतपुरके द्वारपर पहुंच जावे तब वहां मित्र व भमात्यादि राजासे पंछे-क्या आप इसी स्थविनीत द्वारा श्रावस्तीसे साकेत भाए हैं ? तब राजा यही उत्तर देगा मैंने बीचमें सात रथ विनीत स्थापित किये थे । श्रावस्तीसे निकलकर चलते २ क्रमशः एकको छोड़ दूसरेपर चढ़ इस सातवें स्थविनीतसे साकेतके अंत:पुरके द्वारपर पहुंच गया हूं। इसी तरह शीलविशुद्धि तभीतक है
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