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१७८] दूसग भाम् । (१८) मज्झिमनिकाय वम्मिक (वल्मीक) सूत्र।
एक देवने अायुष्यमान् कुमार काश्यपसे कहाभिक्षु ! यह वल्मीक रातको धुंधवाता है, दिनको बलता है।
ब्राह्मणने कहा- सुमेध ! शस्त्रसे अभीक्षण ( काट ) सुमेधने शस्त्रसे काटते लंगोको देखा, स्वामी लंगी है । ___ बा० - लंगीको फेंक, शस्त्रसे काट । सुमेधने धुंधवाना देखकर कहा धुंधवाता है । ब्रा०-धुंधवानेको फेंक, शम्रमे काट ।
सुमेधने कहा-दो रास्ते हैं । ब्रा०-दो रास्ते फेंक ।
सुमेध - चंगवार ( टोकर ) है। बाल-चंगवार फेंक दे । सुमेध-कूर्म है। ब्रा०- कूर्म फेंक दे। सुमेघ-असिसूना ( पशु मारनेका पीढ़ा ) है । ब्रा०-अमिमूना फेंक दे । सुमेघ-मांसपेशी है। ब्रा०-मांसपेशी फेंक दे। सुमेध - नाग है। ब्रा०-हने दे नागको, मत उसे धक्का दे. नागको नमस्कार कर ।
देवने कहा- इसका भाव बुद्ध भगवानसे पृछन । तब कुमार काश्यपने बुद्धसे पूछा।
गौतमबुद्ध कहते हैं-(१) वल्मीक यह माता पितासे उत्पन्न, भातदालमे वर्धित, इसी चातुर्नीतिक ( पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुरूपी ) कायाका नाम है जो कि अनित्य है तथा उत्पादन (हटाने) भर्दन, भेदन, विश्वसन स्वभाववाला है, (२) जो दिनके कामों के लिये रातको सोचता है, विचाता है, यही गलका धुंधवाना है, (३) जो रातको सोच विचार कर दिनको वीया और बचनसे कायोंमें योग देता है । यह दिनका धकना है, (४) ब्रह्मग-अईत् सम्यक्
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