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जौन बैद्ध तत्त्वज्ञान । [२३५ बाधक है, संसार मार्गवर्द्धक है, ऐसा विवारना चाहिये। इसके विरुद्ध निष्कामभाव या वीतरागभाव तथा वीतद्वेष या अहिंसकमाव अपने भीतर शांति व सुख उत्पन्न करता है । कोई भाकुलता नहीं होती है । दूसरे भी जो संयोगमें भाते हैं व वाणीको सुनते हैं उनको भी सुखशांति होती है। वीतराग तथा अहिंसामई भावसे किसी भी प्राणीको कष्ट नहीं दिया जासक्ता, किसीके प्राण नहीं पीड़े जाते । सर्व प्राणी मात्र अभय भावको पाते हैं। रागद्वेषसे जब कर्मोका बन्ध होता है तब वीतरागभावसे कोका क्षय होकर निर्वाण प्राप्त होता है।
- ऐसा वारवार विचारकर भेदविज्ञानके अभ्याससे वीतराग या वीतद्वेष भावकी वृद्धि करनी चाहिये तब ही ध्यानकी सिद्धि होसकेगी। भेद विज्ञान में तो विचार होते हैं । चित्त चंचल रहता है । समाधान व शांति नहीं होती है । इसलिये साधक विचार करते२ अध्यात्मरत होजाता है, अपनेमे एकाग्र होजाता है, ध्यानमग्न होजाता है, तब चित्तको परम शांति प्राप्त होती है। जब ध्यानमें चित्त न लगे तब फिर भेदविज्ञानका मनन करते हुए अपनेको कामभाव व द्वेषभाव या हिंसात्मक भावसे रक्षित करे । सुत्रमें ग्वालेका दृष्टान्त इसीलिये दिया है कि ग्वाला इस बातकी सावधानी रखता है कि गाएं खेतोंको न खाले। जब खेत हेरेभरे होते हैं तब गायोंको वारवार जाते हुए रोकता है । जब खेत फसल रहित होते हैं तब गायोंको स्मरण रखता है, उनसे खेतोंकी हानिका भय नहीं रखता है। इसीतरह जब तक काममाव व द्वेषभाव जागृत होरहे हैं, उद्योग करते भी रागद्वेष होजाते हैं, तबतक साधकको वारवार विचार करके उनसे चिवको
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