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१४] सभी औपपातिक (देव) हो। वहां जो परिनिर्वाणको प्राप्त होनेवाले हैं, उस कोकसे लौटकर नहीं आनेवाले (अनावृत्तिधर्मा, अनागामी) हैं । (३) ऐसे स्वास्यात धर्ममें जिन भिक्षुओंके राग द्वेष मोइ तीन संयोजन नष्ट होगए हैं, निर्बल होगए हैं वे सारे सकृदागामी (सकदएकवार ही इस लोकमें आकर दुःखका अंत करेंगे) होंगे। (४) ऐसे स्वाख्यात धर्ममें जिन भिक्षुओंके तीन संयोजन (राग द्वेष मोह) नष्ट होगए वे सारे नवर्तित होनेवाले संबोधि (बुद्धके ज्ञान) परायण स्रोतापन्न ( निर्वाणकी ओर ले जानेवाले प्रवाहमें स्थिर रीतिसे भारूड ) हैं।
भिक्षुओ ! ऐसे स्वाख्यान धर्ममें जो भिक्षु श्रद्धानुसारी हैं, "धर्मानुसारी हैं वे सभी संबोधि परायण हैं । इसप्रकार मैंने धर्मका अच्छी तरह व्याख्यान किया है । ऐसे वख्यात धर्ममें जिनकी मेरे विषयमें श्रद्धा मात्र, प्रेम मात्र भी है वे सभी स्वर्गपरायण (स्वर्गगामी) हैं।
नोट-उस सूत्र में स्वानुमत्रगम्य निर्वाणका या शुद्धामाका बहुत ही बढिया उपदेश दिया है जो परम कल्याणकारी है। इसको बारबार मनन कर समझना चाहिये । इसका भावार्थ यह है
(१) पहले यह बताया है कि शास्त्रको या उपदेशको टीक ठीक समझकर केवल धर्म लाभके लिये पालना चाहिये, किसी लाभ व सत्कार के लिये नहीं। इस पर दृष्टांत सर्पका दिया है। जो सर्पको ठीक नहीं पड़ेगा उमे सर्प काट खाएगा, वह मर जायगा। परन्तु बो सर्पको ठीक२ पकडेगा वह सर्पको वश कर लेगा । इसी तरह
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