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दसरा भाग। काम छन्द-भोगोंसे राग (५) व्यापाद (द्वेषभाव) नाश कर दिया है इसलिये यह निरर्गल (लगामरूपी संसारसे मुक्त) है। इस भिक्षुका अभिमान (ईका अभिमान) नष्ट होता है । भविष्यमें न उत्पन्न होनेलायक होता है, इसलिये वह पन्त ध्वज ( जिसकी रागादिकी ध्वजा गिर गई है , पन्त भार (जिसका भार गिर गया है, विसंयुक्त ( रागादिसे विमुक्त ) होता है । इसप्रकार मुक्त भिक्षुको इन्द्रादि देवता नहीं जान सक्ते कि इस तथागत ( भिक्षु) का विज्ञान इसमें निश्चित है, क्योंकि इस शरीरमें ही तथागत अन् अनुवेध ( अज्ञेय ) है।
भिक्षुओ ! कोई कोई श्रमण ब्राह्मण ऐसे ( ऊपर लिखित) मादको माननेवाले, ऐसा कहनेवाले मुझे मसत्य, तुच्छ, मृषा, अभूत. झूठ लगाते हैं कि श्रमण गौतम वैनेयिक (नहींके चादको माननेवाला) है। वह विद्यमान सत्व (जीव या आत्मा) के उच्छेदका उपदेश करता है । भिक्षुओ ! जो कि मैं नहीं कहता।
भिक्षुओ: पहले भी और अब भी मैं उपदेश करता हूं, दुःखको और दुःख निरोधको। यदि भिक्षुओ : तथागतको दुसरे निन्दते उससे तथागतको चोट, असंतोष और चित्त विकार नहीं होता । यदि दुसरे तथागतका सत्कार या पूजन करते हैं उससे तथागतको आनन्द. सोमनस्क. चित्तका प्रसन्नताऽतिरेक नहीं होता। जब दुसरे तथागतका सत्कार करते हैं तब तथागतको ऐसा होता है जो पहले ही त्याग दिया है। उसीके विषय में इस प्रकारके कार्य किये जाते हैं । इसलिये भिक्षुओ ! यदि दूसरे तुम्हें भी निन्दे तो
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