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जौन बैद तत्वज्ञान । इसलिये भिक्षुमो ! भीतर (शरीग्में ) या बाहर, स्थूल या सूक्ष्म, उत्तम या निकृष्ट, दुर या निकट, जो कुछ भी भूत, भविष्य वर्तमान रूप है, वेदना है, संज्ञा है, सस्कार है, विज्ञान है वह सब मेरा नहीं है । 'यह मैं नहीं हूं' 'यह मेरा मात्मा नहीं है' ऐसा मले प्रकार समझकर देखना चाहिये ।
ऐसा देखनेपर बहुश्रुत आर्यश्रावक रूपमें भी निर्वेद ( उदासीनता ) को प्राप्त होता है, वेदनामें भी, संज्ञामें भी, संस्कारमें भी, विज्ञानमें भी निर्वेदको प्राप्त होता है। निर्वेदसे विरागको प्राक्ष होता है । विगग प्राप्त होनेपर विमुक्त होजाता है। रागादिसे विमुक्त होनेपर 'मैं विमुक्त होगया' यह ज्ञान होता है फिर जानता है-जन्म क्षय होगया, ब्रह्मचर्यवाप्त पूरा होगया, करणीय कर लिया, यहां और कुछ भी करनेको नहीं है। इस भिक्षुने अविद्याको नाच कर दिया है, उच्छिन्नमूल, अमावको प्राप्त, भविष्यमें न उत्पन्न होने लायक कर दिया है। इसलिये यह उक्षिप्त परिघ (जूएसे मुक्त) है। इस भिक्षुने पौर्वमविक (पुनर्जन्म सम्बन्धी) जाति संस्कार (जन्म दिलानेवाले पूर्वकृत कमौके चित प्रवाह पर पड़े संस्कार) को नाश कर दिया है, इसलिये यह संकीर्ण परिख (वाई पार) है। इस भिक्षुने तृष्णाको नाश कर दिया है इसलिये यह अत्यूद हरीसिक (जो हलकी हरीस जैसे दुनियांके भारको नहीं उठाए है) है। इस भिक्षुने पांच अवरभागीय संयोजनों ( संसारमें फंसानेवाले पांच दोष(१) सत्कायदृष्टि-शरीरादिमें आत्मदृष्टि, (२) विचिकित्सा-संशय, ३) शीलव्रत परामर्श-व्रत भाचरणका अनुचित अभिमान, (७)
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