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भावार्थ:- ममतासे लोम होता है, कोमसे राग होता है, रागसे द्वेष होता है, द्वेषसे दुःखोंकी परिपाटी चलती है। इसलिये ममतारहितपना परम तत्व है, निर्मलता परम सुख है, निर्मकता ही मोक्षका परम बीज है, ऐसा विद्वानोंने कहा है ।
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यैः संतोषातं पीतं तृष्णातृट् णासनं ।
तख निर्माणसौख्यस्य कारणम् समुपार्जितम् ॥ २४७ ॥ भावार्थ- जिन्होंने तृष्णारूपी प्यास बुझानेवाले संतोषरूपी अमृतको पिया है उन्होंने निर्वाणसुख के कारणको प्राप्त कर लिया है।
परिग्रहपरिष्वङ्गाद्रागद्वेषश्च जायते ।
रागद्वेषौ महाबन्धः कर्मणां भवकारणम् ॥ २५४ ॥
भावार्थ - धन धान्यादि परिग्रहोंको स्वीकार करने से राग और द्वेष उत्पन्न होता ही है। रागद्वेष ही कर्मोके महान बंधके कारण हैं उन्होंसे संसार बढ़ता है ।
कुसंसर्गः सदा त्याज्यो दोषाणां प्रविधायकः ।
सगुणोऽपि जनस्तेन लघुतां याति तत् क्षणात् ॥ २६९ ॥
भावार्थ- दोषोंको उत्पन्न करनेवाली कुसंगतिको सदा छोड़ना योग्य है । उस कुसंगति से गुणी मानव भी दममर में हलका होजाता है। जो कोई मन, वचन, कायसे रागद्वेषोंके निमित्त बचाएगा व निज अध्यात्म में रत होगा वही समाधिको जागृत करके सुखी होगा, संसारके दुःखोंका अन्त कर देगा ।
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