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. (१) और जैसे एक मर्दित, मृदु, खर्खराहट रहित बिल्ली के चमड़ेकी खाल हो, तब कोई पुरुष काठ या ठीकरा लेकर पाए और बोले कि मैं इस काठसे बिल्लीकी खालको खुर्खरी-बनाऊंगा तो क्या वह कर सकेगा ! नहीं, क्योकि बिल्लीकी खाल मर्दित है. मृदु है, वह काठसे या ठीकरेसे खुखुरी नहीं की जासक्ती। इसी तरह पांचों वचनपथके होनेपर तुम्हें सीखना चाहिये कि मैं सर्वलोकको बिल्लीको लालके समान चित्तसे वैरभावरहित मावसे भरकर विहरूंगा। ... (५) भिक्षुओं! चोर लुटेरे चाहे दोनों ओर मुठिया लगे, मारेसे अंग अंगको चीरे तौमी जो भिक्षु मनको द्वेषयुक्त करे तो वह मेरा शासनकर (उपदेशानुसार चलनेवाला) नहीं है । वहांपर भी मिक्षुओं ! ऐसा सीखना चाहिये कि मैं अपने चित्तको विकारयुक्त न होने दूंगा न दुर्वचन निकालंगा। मैत्रीमावसे हितानुकम्पी होकर बिहकंगा, न द्वेषपूर्ण चित्तसे । उस विरोधीको भी मैत्रीपूर्ण चित्तसे साप्तापित कर बिहरूंगा । उसको लक्ष्य करके सारे लोकको विपुल, विशाल, मामाण, मैत्रीपूर्ण चित्तसे भरकर अवैरता व भन्यापादितासे भरकर विहरूंगा।
भिक्षुओं ! इस क्रकचोयम (आरेके दृष्टांतवाले ) उपदेशको निरंतर मनमें करो। यह तुम्हें चिरकालतक हित, मुखके लिये होगा।
नोट-इस सूत्रमें नीचे प्रकार सुन्दर शिक्षाएं हैं. (१) भिक्षुको दिन रातम केवल दिनम एकवार भोजन करना चाहिये, यही शिक्षा गौतमबुद्धने दी थी व आप भी एकासन करते थे। योगीको, त्यागीको, ध्यानके अभ्यासीको दिनमें एक ही
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